31 अगस्त 2015
4 फ़ॉलोअर्स
मैं हिंदी में प्रोफेसर और प्रिंसपल रही हूँ D
नारी हरी हरी जी करें हरियों का सम्मान लाज हरी पर नारी की धाए तजि हरियन
19 सितम्बर 2015
किसी कारणवश आपकी यह रचना प्रकाशित नहीं हो सकी है, कृपया पुनः प्रयास करें...धन्यवाद !
मैं आज ही शब्द नगरी से जुडी मैं चाहती हूँ कि लोग मुझसे जुड़कर अपने विचारोँ को साझा करें .
जिंदगी रेत के मानिंद है प्रतिपल क्षरणशील है . मरणधर्मा कैसे अमर्त्य बने ?इसकी कोशिश ही मानव का लक्ष्य होना चाहिए
नवनिकाश पत्रिका का सौवां अंक अक्टूबर में प्रकाशित होगा . मुझे प्रसन्नता है यह जानकर की एक लघु पत्रिका ने इतनी लम्बी यात्रा पूरी की है . हिंदी के साहित्यकारों से अनुरोध है की वे इस अंक के लिए अपनी रचनाएँ भेजें . नवनिकश के बारे में आप हमसे संपर्क कर सकते हैं.
जीवन चलते रहने का नाम है . चौरासी लाख योनियों में चलते चलते हम मानव बने हैं . जो चलता नहीं वह चलायमान हो जाता है . कुछ चलते नहीं चलते हैं . कुछ की जबान चलती है वे वाचाल कहे जाते हैं . मशीन भी न चले तो बेकार हम तो इंसान हैं. पर आज संसद नहीं चलती, स्च्होल नहीं चलते, अस्पताल नहीं चलते हाँ खराब सिक्के च