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प्रस्तावना - रिच डैड पुअर डैड

27 अप्रैल 2023

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मेरे दो डैडी थे, इसलिए मेरे पास दो विरोधी दृष्टिकोणों का विकल्प था एक अमीर आदमी का और एक ग़रीब आदमी का ।

मेरे दो डैडी थे, एक अमीर और एक ग़रीब एक उच्च शिक्षित और बुद्धिमान थे। वे पीएच.डी. थे और उन्होंने चार साल का पूर्वस्रातक पाठ्य- क्रम दो साल में ही पूरा कर लिया था। इसके बाद पढ़ाई करने के लिए वे स्टैनफ़र्ड यूनिवर्सिटी, शिकागो यूनिवर्सिटी और नॉर्थवेस्टर्न यूनिव- र्सिटी गए - ज़ाहिर है, पूरी स्कॉलरशिप्स पर दूसरे डैडी कभी आठवीं भी पास नहीं कर पाए।

दोनों ही डैडी अपने करियर में सफल थे। दोनों ने ही जिंदगीभर कड़ी मेहनत की। दोनों ने ही काफ़ी पैसे कमाए, लेकिन एक हमेशा आर्थिक परेशानियों से जूझते रहे। दूसरे आगे चलकर हवाई के सबसे अमीर लोगों में से एक बने। एक अपनी मृत्यु के समय अपने परिवार, परोपकारी संस्थाओं और चर्च के लिए करोड़ों डॉलर छोड़कर गए। दूसरे ने अधूरे बिल छोड़े, जिनका भुगतान बाक़ी था।

दोनों ही डैडी शक्तिशाली, करिश्माई और प्रभावशाली थे। दोनों ने ही मुझे सलाह दी, लेकिन उन्होंने एक जैसी चीजें करने की सलाह नहीं दी। दोनों ही शिक्षा पर बहुत ज़ोर देते थे, लेकिन उन्होंने अध्ययन के लिए एक जैसे पाठ्यक्रम की सलाह नहीं दी। अगर मेरे सिर्फ़ एक ही डैडी होते, तो मैं या तो उनकी सलाह मान लेता या फिर उसे ठुकरा देता । दो डैडी होने से मुझे विरोधी दृष्टिकोण

का विकल्प मिला : एक अमीर आदमी का और दूसरा ग़रीब आदमी का।

उनमें से किसी एक दृष्टिकोण को स्वीकार या अस्वीकार करने के बजाय मैं उनकी कही बातों पर काफ़ी सोच-विचार करता था, उनकी तुलना करता था और फिर अपने लिए विकल्प चुनता था। समस्या यह थी कि अमीर डैडी उस वक़्त अमीर नहीं थे और ग़रीब डैडी उस वक़्त ग़रीब नहीं थे। दोनों ही अपना करियर शुरू कर रहे थे और दोनों ही आर्थिक व पारिवारिक क्षेत्रों में संघर्ष कर रहे थे, परंतु पैसे के बारे में उनके दृष्टिकोण बहुत भिन्न थे।

मिसाल के तौर पर, एक डैडी कहते थे, "पैसे का प्रेम ही सारी बुराई की जड़ है।" दूसरे बैठी कहते थे, "पैसे की कमी ही सारी बुराई की जड़ है।"

दो शक्तिशाली डैडियों की अलग-अलग सलाह से बचपन में मुझे बड़ी उलझन होती थी। मैं एक अच्छे बेटे की तरह उनकी बातें सुनना चाहता था और उन पर अमल करना चाहता था। दिक्कत यह थी कि दोनों डैडी एक सी बातें नहीं कहते थे। उनके दृष्टिकोण में ज़मीन-आस- मान का अंतर था, ख़ासतौर पर पैसे के संबंध में। इससे मैं बहुत चकराता था, लेकिन मेरी जिज्ञासा जाग गई। मैं काफ़ी समय तक सोचता रहता था कि उनमें से किसने क्या कहा और क्यों कहा।

अपने ख़ाली समय में अधिकतर में इसी बारे में विचार करते हुए ख़ुद से यह सवाल पूछता था, “उन्होंने ऐसा क्यों कहा?" फिर में दूसरे डैडी की कही बातों के बारे में भी यही सवाल पूछता था। इसके बजाय तो यह कहना ज्यादा सरल होता, "हाँ, उनकी बात बिलकुल सही है। मैं इससे सहमत हूँ।" या यह कहकर उनके उस दृष्टिकोण को नकार देना भी आसान होता, "उन बुजुर्ग इंसान को पता ही नहीं है कि वे क्या बोल रहे हैं।" मैं दोनों डैडियों से प्रेम करता था, इसलिए मैं सोचने के लिए विवश हुआ और अंततः मुझे अपने लिए सोचने का तरीक़ा चुनने की ख़ातिर मजबूर होना पड़ा। इस प्रक्रिया में अपने लिए विकल्प चुनना आगे चलकर काफ़ी मूल्यवान साबित हुआ, जो किसी दृष्टिकोण को सिर्फ़ स्वीकार या अस्वीकार करने से संभव नहीं था।

अमीर लोग ज्यादा अमीर बनते हैं और ग़रीब ज्यादा गरीब, तथा मध्यवर्ग क़र्ज़ में डूबा रहता है, इसका एक कारण यह है कि पैसे का विषय स्कूल में नहीं, घर पर पढ़ाया जाता है। हममें से ज्यादातर लोग पैसे के बारे में अपने माता-पिता से सीखते हैं। गरीब माता-पिता अपने बच्चों को पैसे के बारे में क्या सिखा सकते हैं? वे बस कह देते हैं, "स्कूल जाओ और मेहनत से पढ़ो।" हो सकता है कि बच्चा बेहतरीन ग्रेड के साथ पढ़ाई पूरी कर ले, लेकिन इसके बाद भी उसकी आर्थिक प्रोग्रामिंग और मानसिकता तो ग़रीब व्यक्ति की ही रहेगी।

दुर्भाग्य से, पैसे का विषय स्कूलों में नहीं पढ़ाया जाता। स्कूल में वित्तीय योग्यताओं के बजाय अकादमिक और पेशेवर योग्यताओं पर ज़ोर दिया जाता है। इससे यह स्पष्ट होता है कि जिन चतुर बैंकरों, डॉक्टरों और लेखापालों ने स्कूल-कॉलेज में बेहतरीन ग्रेड पाए थे, वे जीव- नभर पैसे के लिए क्यों जूझते रहते हैं। अमेरिका पर जो भारी राष्ट्रीय क़र्ज़ है, वह काफ़ी हद तक इसी कारण है, क्योंकि जो उच्च शिक्षित रा- जनेता और सरकारी अधिकारी वित्तीय निर्णय ले रहे हैं, उनके पास पैसे के विषय पर बहुत कम प्रशिक्षण है या ज़रा भी नहीं है।

20 साल पहले आज...

कर्ज़ की घड़ी

20 साल आगे जाएँ... और अमेरिका का राष्ट्रीय क़र्ज़ चौकाने वाले स्तर से भी आगे पहुँच चुका है। इस पुस्तक के प्रेस में छपने जाते समय यह 20 ट्रिलियन डॉलर के आस-पास है। यह बहुत भारी रक़म है।

आज मैं अक्सर सोचता हूँ कि तब क्या होगा, जब जल्द ही हमारे बीच लाखों-करोड़ों लोग होंगे, जिन्हें आर्थिक और चिकित्सकीय सहा- यता की ज़रूरत होगी। आर्थिक सहायता के लिए वे अपने परिवार या सरकार पर निर्भर रहेंगे। जब मेडिकेयर और सामाजिक सुरक्षा का पैसा ख़त्म हो जाएगा, तब क्या होगा? देश कैसे बचेगा, अगर पैसे के बारे में बच्चों को सिखाने का काम माता-पिताओं के भरोसे छोड़ दिया 1- जिनमें से अधिकतर या तो पहले से ही गरीब हैं या फिर ग़रीब होने वाले हैं? 

चूंकि मेरे पास दो प्रभावशाली डैडी थे, इसलिए मैंने दोनों से ही सीखा। मुझे हर डैडी की सलाह के बारे में सोचना पड़ता था और ऐसा करके मैंने इस बारे में बहुत मूल्यवान ज्ञान हासिल किया कि किसी इंसान के विचार उसके जीवन पर कितना ज्यादा असर डाल सकते हैं। मिसाल के तौर पर, एक डैडी में यह कहने की आदत थी, "मैं इसे नहीं ख़रीद सकता।" दूसरे डैडी ने इन शब्दों को प्रतिबंधित कर दिया था। वे ज़ोर देते थे कि मैं इसी बात को इस तरह पूछें, "मैं इसे कैसे ख़रीद सकता हूँ?" एक वाक्य कथन है और दूसरा प्रश्न है। एक में बात ख़त्म हो जाती है और दूसरे में आप सोचने के लिए मजबूर होते हैं। मेरे जल्द ही अमीर बनने वाले डैडी समझाते थे कि "मैं इसे नहीं ख़रीद सकता," कहने से आपका दिमाग किस तरह काम करना छोड़ देता है। दूसरी ओर, "मैं इसे कैसे ख़रीद सकता हूँ?” यह सवाल पूछने से आपका दिमाग़ सक्रिय हो जाता है। उनका यह मतलब नहीं था कि आपका जिस भी चीज़ पर दिल आ जाए, आप उसे ख़रीद लें। उन्हें अपने दिमाग़ की कसरत कराने का जुनून था, जिसे वे संसार का सबसे शक्तिशाली कंप्यूटर मानते थे। वे कहते थे, "मेरे दिमाग़ की शक्ति हर दिन बढ़ती है, क्योंकि मैं इसका व्यायाम कराता हूँ। यह जितना ज्यादा शक्तिशाली बनता है, मैं उतने ही ज्यादा पैसे बनाता हूँ।" वे मा- नते थे कि स्वचलित ढंग से "मैं इसे नहीं ख़रीद सकता" कहना मानसिक आलस्य की निशानी है।

हालाँकि दोनों ही डैडी कड़ी मेहनत करते थे, लेकिन मैंने गौर किया कि आर्थिक मसलों पर एक में अपने दिमाग़ को सुलाए रखने की आदत थी और दूसरे में अपने दिमाग़ का व्यायाम कराने की आदत थी। इसका दीर्घकालीन नतीजा यह निकला कि एक डैडी आर्थिक दृष्टि से ज्यादा शक्तिशाली बनते चले गए और दूसरे ज्यादा कमज़ोर होते गए। इसे इस तरह समझें। एक आदमी नियमित रूप से जिम में व्या- याम करने जाता है और दूसरा सोफ़े पर बैठकर टीवी देखता रहता है। इसका क्या परिणाम होगा? जिस तरह सही शारीरिक व्यायाम स्वा- स्थ्य के आपके अवसरों को बढ़ा देता है, उसी तरह सही मानसिक व्यायाम दौलत के आपके अवसरों को बढ़ा देता है।

मेरे दोनों डैडियों के विरोधी नज़रिये थे और इससे उनके सोचने के तरीक़े पर असर पड़ता था। एक डैडी सोचते थे कि अमीरों को ज्यादा टैक्स देना चाहिए, ताकि गरीबों को फ़ायदा मिल सके। दूसरे डैडी कहते थे, "टैक्स उत्पादन करने वाले लोगों को सज़ा देता है और उत्पादन ना करने वालों को पुरस्कार देता है।"

एक डैडी सलाह देते थे, "मेहनत से पढ़ो, ताकि तुम्हें किसी अच्छी कंपनी में नौकरी मिल जाए।" दूसरे डैडी यह नसीहत देते थे, "मे- हनत से पढ़ो, ताकि तुम्हें खरीदने के लिए कोई अच्छी कंपनी मिल जाए।"

एक डैडी कहते थे, “मैं इसलिए अमीर नहीं हूँ, क्योंकि मुझे तुम बाल-बच्चों को पालना पड़ता है।" दूसरे का कहना था, "मुझे इसलिए अमीर बनना है, क्योंकि मुझे बाल-बच्चों को पालना है।"

एक डैडी डिनर टेबल पर पैसे और कारोबार संबंधी बातें करने के लिए हमेशा प्रोत्साहित करते थे, जबकि दूसरे डैडी ने भोजन करते समय पैसे संबंधी बातचीत पर प्रतिबंध लगा रखा था।

एक कहते थे, "जहाँ पैसे का मामला हो, वहाँ सुरक्षित खेलो। जोख़िम मत लो।" दूसरे कहते थे, "जोख़िम को सँभालना सीखो।" एक डैडी को यक़ीन था, "हमारा मकान हमारा सबसे बड़ा निवेश और हमारी सबसे बड़ी संपत्ति है।" दूसरे डैडी का मानना था, "मेरा मकान एक दायित्व है और अगर आपका मकान आपका सबसे बड़ा निवेश है, तो आप संकट में हैं।"

दोनों ही डैडी अपने बिल समय पर चुकाते थे, लेकिन एक अपने बिल सबसे पहले चुकाते थे, जबकि दूसरे अपने बिल सबसे अंत में चु-काते थे।

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