दैनन्दिनी आपके यादगार पलों को सँजोने के साथ-साथ दूसरे पाठकों को आपकी जीवनी से भी परिचय कराती है। मुझे याद है, जब मैं कक्षा-9 में था तो मेरे पिता जी ने मुझे एक डायरी भेंट की थी, उस समय मैंने उनसे पूछा था कि इसमें क्या लिखूँगा? मेरी बात पर पिता जी ने दादा जी की सालों पुरानी एक डायरी दिखाई और कहा-इसको पढ़ना समझ में आ जाएगा क्या लिखना है। मैं तन्मयता से उस डायरी में लिखे लेख को पढ़ता गया और उसको पढ़ने के बाद मुझे दादा जी के की दिनचर्या के बारे में बहुत कुछ पता चला, कई सकारात्मक पहलू मिले। मैं समझ गया कि पिता जी हमारे लिए डायरी क्यों लाए हैं। उसके बाद मैं प्रतिदिन के क्रियाकलापों को डायरी में लिखता गया लेकिन कुछ दिनों बाद परीक्षा के चलते तारतम्य टूट गया, उसके बाद प्रतियोगी जीवन में दैनन्दिनी लिखने की ज़हमत नहीं उठाई। लेकिन मुझे लगता है कि हर व्यक्ति को दैनन्दिनी जरूर लिखनी चाहिए जिससे आगे चलकर हम अपने अनुभवों को पुनर्जीवित कर सकें। यहीं नहीं दैनन्दिनी आने वाली पीढी़ को समकालीन परिस्थितियों से परिचय भी कराएगी। हम प्रतियोगी छात्र हैं, इसीलिए हमने दैनन्दिनी पुस्तक का शीर्षक 'एक प्रतियोगी की दैनन्दिनी' रखा है। हमने अपनी दैनन्दिनी में अपने प्रतियोगी जीवन के प्रतिदिन के खट्टे-मीठे अनुभवों को साझा किया है। आप हमारी दैनन्दिनी पढ़कर कैरियर बनाने के लिए घर से कोसों दूर एक छोटे से कमरे में रहकर तैयारी करने वाले प्रतियोगी छात्रों के प्रतिदिन के घटनाक्रम को समझ सकेंगे। आप हमारी दैनन्दिनी पढे़, साथ ही प्रतिक्रिया भी दें। धन्यवाद! 2 नवंबर, 2022 अंजनी कुमार शर्मा
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