राह कोई नज़र आज आती नहीं
छोड़ कर आस फिर भी जाती नहीं
वादियां ये कभी कितनी खुशहाल थी
ज़िन्दगी अब कहीं मुस्कुराती नहीं
कोयल भी ना जाने क्यूँ चुप हो गई
चमेली भी अब आँगन सजाती नहीं
अलहदा अलहदा लोग क्यूँ हो गए
दूरियां कोई शय क्यूँ मिटाती नहीं
हाल क्या पूछते हो मेरा अब तुम
क्या नज़र ये हमारी बताती नहीं?
अशोक