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यादों के झरोखे

यादों के झरोखे

संसार साधनो ने आज दुनियाँ को बहुत छोटा बना दिया है | समय की गति तेज हो गयी है | पुरातन और नवीन के बीच भरी अंतर आ गया है | गुत्थियां भी वे हिसाब उलझी है और वे अपना समाधान चाहती है | यह सब किस प्रकार संभब हो ? इसके लिए सामयिक साहित्य चाहिए | ऐसा साहि

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यादों के झरोखे

संसार साधनो ने आज दुनियाँ को बहुत छोटा बना दिया है | समय की गति तेज हो गयी है | पुरातन और नवीन के बीच भरी अंतर आ गया है | गुत्थियां भी वे हिसाब उलझी है और वे अपना समाधान चाहती है | यह सब किस प्रकार संभब हो ? इसके लिए सामयिक साहित्य चाहिए | ऐसा साहि

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