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यादों के झरोखे

राजीव कुमार सिसोदिया


संसार साधनो ने आज दुनियाँ को बहुत छोटा बना दिया है | समय की गति तेज हो गयी है | पुरातन और नवीन के बीच भरी अंतर आ गया है | गुत्थियां भी वे हिसाब उलझी है और वे अपना समाधान चाहती है | यह सब किस प्रकार संभब हो ? इसके लिए सामयिक साहित्य चाहिए | ऐसा साहित्य जो ह्रदय वेदना को अतरंग की गहराई में ले जा सके |  

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