संसार साधनो ने आज दुनियाँ को बहुत छोटा बना दिया है | समय की गति तेज हो गयी है | पुरातन और नवीन के बीच भरी अंतर आ गया है | गुत्थियां भी वे हिसाब उलझी है और वे अपना समाधान चाहती है | यह सब किस प्रकार संभब हो ? इसके लिए सामयिक साहित्य चाहिए | ऐसा साहित्य जो ह्रदय वेदना को अतरंग की गहराई में ले जा सके |