पहली बार देखा तो खयाल आया,
कहीं मुझे कुछ हो तो नहीं गया,
कहीं मैं मरने वाली तो नहीं हूं,
सोचा, ऐसा मेरे साथ ही क्यों?
चिल्लाई,रोई और फिर पता
चला यह तो जीवनदायनी होने की
प्रथम सीढ़ी है !
फिर मुझे लगा जीवन देने से ज्यादा
पवित्र तो कुछ भी नहीं हो सकता,
भ्रम टूटा, अरे इन दिनों में तुम
अछूत और पापी हो गयी हो,
रसोई में तो यहाँ तुम कदम रखी
उधर पूरा रसोई घर अपवित्र हुआ,
न पुरुषों को खाना -पानी नहीं दे सकती ,
पूजा का कमरा तो देखना भी पाप है,
लगा कि शायद संस्कृति है,फिर
रक्तस्राव को दैवीय ,पूजित और
सर्वशक्तिमान के रूप में भी पाया,
तब से सोच में ही हूं🤔
यही हर मास होता देखा यहीं नहीं,
इस पर बात करना भी शर्मिंदगी है
यह भी देखा 🤨,
तड़पते,परेशान,बेचैन देखा है खुद को
शुरू होने से पूर्व कहीं आ तो नहीं गया,
चार दिन पहले से तैयारी करके रखना है,
कहीं मंदिर जाऊ और फिर हो गया तो,
कहीं पाप न लगे,यात्रा कर रही हूं ,अरे
कुछ काला या डार्क पहनूँगी,लोग देख
लिए तो हसेंगे,ऊपर ड्राइवर बस तो रोकता नहीं,
हर जगह महिला शौचालय तो नहीं है न ,क्या करूँ!
ऊपर से यह खाल उधेड़ देने जैसी पीड़ा,
लंबे समय तक एक जगह नहीं बैठ सकती मैं,
थोड़ा कोई प्यार से सिर सहला दे तो अच्छा लगता,
लेकिन ख्याल के लिए अच्छा है!
हम अपना काम पूरी निष्ठा से करते है और करेंगे
हमें(स्त्री) तो ज्यादा तकलीफ़ मानसिकता देती है!
सोच नहीं पाती हूं मैं कि यह जो दूसरे उद्धरण में है,
यह सच तो नहीं हो सकता है ,क्योंकि सुना नहीं कि
कहीं यह वर्णित है या लिखित है,
या यों ही इनको किसी ने अपनी सहूलियत में बनाया,
किसी ने माना फिर मानते गए, किसी ने हमसे(स्त्री)
पूछा कि तुम कैसा महसूस करती हो, क्या चाहती हो,
नहीं लेकिन यह(रक्तस्राव)न हो तो ,उसपर भी उनको
ताने मिलते है जानते हो क्या , मनहूस,अपवित्र,पाप
की होगी पिछले जनम में ,वगैरह -वगैरह!
बदला भी है अब कुछ- कुछ ,पिता ,भाई को बता सकती है अब,
सामान्य दिनों की तरह सब है उसको जो मन करती है,
कहीं-कहीं उनके हम साथी ,अपने ,उनका बहुत खयाल रखते है,प्यार देते है ,पहली रक्तस्राव खुशियां मनाते है,
पूजित मानते है,,, लेकिन यह बस कुछ बिल्कुल थोड़े
लोग है ,,,,,,, जो वाकई क़ाबिले तारीफ है 💐