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रात का घना अन्धकार!रह-रहकर मेघ तेज स्वरों में गरज रहे हैं |बिजली भी चमक रही है |कभी आड़ी-तिरछी,कभी सीधी -सरल उज्ज्वल तन्वंगी बिजली!मैं देर से खिड़की के पास खड़ी बिजली की कीड़ा देख रही हूँ|अद्भुत दृश्य है
कई वर्ष बाद मेरा दुष्यंत से सामना हुआ था। मुझे आश्चर्य हुआ कि अब उसके प्रति मेरे मन में कुछ नहीं था। न प्यार न नफ़रत। मेरे मन ने इस कदर पराया कर दिया था उसे, कि कोई फ़र्क नहीं पड़ता था कि वह पास आ बैठे य
मैं बहुत परेशान थी,जी चाहता था कि खुद को खत्म कर लूँ ।बात सिर्फ इतनी थी कि मेरा प्रेमी वादे के अनुसार मिलने नहीं आया था बस। पर मैं उसकी वादाखिलाफी को बेवफाई समझ हताश हो रही थी। मेरी हताशा का कारण उसका
दुष्यंत, तुम्हारे बारे में मैंने तमाम कहानियाँ सुन रखी थीं |तुम लड़कियों में एक साथ ही लोकप्रिय और बदनाम दोनों थे पर उससे मुझे कोई फर्क नहीं पड़ा |पहली ही नजर में तुम मुझे अच्छे लगे और मन में तुम्ह
भाभी के मुंह से प्रेम की मृत्यु की खबर पाकर मीरा सन्न रह गयी |उसके मुँह से अकस्मात निकल पड़ा-ओह1 कब की बात है ?क्या दो साल पहले.... जाड़े में....क्या हुआ था उन्हें ?तब तक&n