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रीना का रहस्य

17 फरवरी 2022

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दोस्तों आज फिर से एक रियल कहानी लेकर आया हूं। उम्मीद है आपको पसंद आएगी।

मन अभी भी मानने को तैयार नही है पर सत्य तो सत्य ही होता है। बात वर्ष 1981 की है। पहली बार घर से दूर लॉ ग्रेजुएशन के लिये देहरादून के डी .ए .वी. कॉलेज में एडमिशन लिया था।बाकी शिक्षा हमारे ग्रह नगर में ही पूर्ण की थी।पहली बार घर से दूर रहने का अवसर था तो थोड़ा अटपटा सा लग रहा था। पिताजी के एक मित्र जो देहरादून मे ही रहते थे उन्होंने कॉलेज के पास ही हमारे लिए कमरे की व्यवस्था पूर्व में ही कर दी थी।

कमरा अच्छा बड़ा था जिसमे हमारा फोल्डिंग पलंग,एक मेज कुर्सी और एक छोटा गैस सिलिंडर रखने के बाद भी काफी जगह बचती थी। कुल मिलाकर आठ कमरे थे जो एक काफी चौड़ी गैलरी के दोनों तरफ चार चार की संख्या में थे।ये कमरे एक बड़ी सी कोठी की साइड में किराए पर देने के लिए बनाए गए होंगे।कोठी में मकान मालकिन जो काफी बूढ़ी थी अपने पुत्रों और पोत्रो के परिवार के साथ रहती थी।मेरा कमरा बाये हाथ वाली लाइन में दूसरा था।

बाकी सभी कमरों में भी पुरुष किरायेदार थे जो सुबह निकलकर देर रात ही वापस आते थे।केवल मैं ही वहाँ पूरे दिन रहता था क्योंकि मेरी क्लासेज शाम को चार से सात बजे तक होती थी।पूरा दिन वहाँ सन्नाटा ही रहता था।
एक शाम क्लास से लौटते समय एक युवती मेरे साथ ही मुख्य द्वार खोल कर गैलरी में प्रविष्ट हुई अबसे पहले मैंने उसे कभी नही देखा था।उसने मेरी तरफ मुस्काते हुए अपने कंधे से उतारकर भारी पिट्ठू बैग को नीचे रखा और पूछा क्या एक गिलास पानी मिलेगा। जी हां जरूर कहते हुए मैंने अपने कमरे का ताला खोल कर उसे बैठने के लिए कुर्सी आगे कर दी।उसने पानी पी कर ग्लास मेज पर टिकाया और मुझसे पूछा कि क्या मैं उसका बैग उसके कमरे तक पहुचाने में मदद करूँगा।

मैंने बिना कुछ बोले उसका बैग उठाया और मेरे सामने वाली लाइन के अंतिम कमरे के बाहर उसके ताला खोलने के बाद कमरे में उसके पीछे प्रवेश किया।उसने कमरे का बल्ब जलाया ।

ये क्या पूरे कमरे में चारो तरफ मकड़ियों के जाले और कूड़ा भरा था।कमरे में दो फोल्डिंग और दो कुर्सी और एक बड़ी मेज पड़ी थी।उसने कोने में पड़ी झाड़ू उठायी और जाले आदि साफ किये।मैं पता नही क्यो अभी तक उसका बैग लिए अभी तक वही खड़ा था।अचानक मुझे ध्यान आया कि मुझे अभी खाना खाने होटल जाना हैं।मैंने उसका बैग वही रखते हुए कहा कि मैं खाना खाने होटल जा रहा हूँ, देर होने पर वह बंद हो जाएगा। उसने मुझे कहा आप चिंता ना करो मैं घर से दो व्यक्तियों का खाना लेकर आई हूं,बस जरा सफाई कर लूं तब तक आप भी हाथ मुह धोकर आजाये।पता नही मैं क्यो मना भी नही कर सका,शायद उसके आकर्षण और सानिध्य की चाह में। दस मिनट बाद ही मैं हाथं मुँह धोकर उसके कमरे में पंहुचा तो देखकर आश्चर्य चकित रह गया क्योकि कमरा अब एकदम साफ सुथरा और बल्ब के प्रकाश में कोना कोना चमक रहा था। उसने मुझे बड़ा सा पानी का जग देते हुए बाहर कामन एरिया से पानी लाने का आग्रह किया।जब तक मैं पानी लेकर आया वह मेज पर टिफ़िन से खाना निकाल कर लगा चुकी थी।

भूख का समय हो चुका था तो मैं बिना किसी फॉर्मेलिटी के खाने पर एक प्रकार से टूट ही पड़ा।खाना खाते खाते बातों के बीच पता लगा कि वह अपने छोटे भाई के साथ यहाँ रहती थी।पिछले महीने किसी आकस्मिकता के चलते उन्हें अपने घर हिमाचल में जाना पड़ा।उसका भाई अभी कुछ दिन वही रहेगा।

अगले दिन क्लास खत्म होने के बाद मैं कॉलेज से बाहर आया तभी लोकल बस आयी और मुझे उसमे से उतरती रीना दिखाई दी।उसने बताया कि वह लगभग इसी समय अपने आफिस से वापस आती है।फिर हम दोनों बातें करते हुए अपने कमरे की तरफ चल दिये।इस प्रकार अब हमारा रोज शाम को कॉलेज से कमरे तक का साथ आने का नियम बन गया। इसके लिए कभी मैं जल्दी आजाता था तो मैं उसकी बस आने तक राह देखता,और वो जल्दी आ जाती थी तो वो वही घूमते हुए राह देखती थी। खाना खाने भी रोज रात को अब हम साथ साथ जाते थे और वापस लौट कर लॉन में करीब आधा घंटे बैठकर बाते करने का हमारा नियम बन गया था।

एक दिन शाम को मैं कॉलेज से बाहर आकर उसकी राह देख रहा था,लगभग पांच मिनट बाद बस आयी जैसे ही वह बस से उतरी उसका पैर मुड़ने से मोच आगयी।लेकिन उसके गिरने से पहले ही मैंने उसे संभाल लिया।पैर में तेज दर्द होने के कारण उसने अपना एक हाथ मेरे कंधे पर रखा और धीरे धीरे हम कमरे की और बढ़ चले।कमरे पर पहुँच कर उसने गरम पानी से पैर की सिकाई की और कसकर एक गरम पट्टी बांध ली।अचानक मुझे बहुत तेज सर्दी का अहसास हुआ और कंपकपी होने लगी।शायद वायरल बुखार की शुरुवात थी।

वापस आकर मैं बिस्तर पर लेट गया।बुखार ने अपना जलवा दिखाना शुरू कर दिया था।अचानक से इतनी तेज बुखार और कंपकपी से मैं लगभग संज्ञा शून्य सा हो चला था। लगभग आठ बजे उसने मेरे कमरे पर दस्तक दी और खाना खाने के लिए पूछा।मेरा तपता मुँह देख मेरे माथे पर हाथ रखते हुए बोली अरे तुम्हे तो तेज बुखार है।उस रात वो भी खाना खाने नही गयी और रात भर अपने पैर के दर्द को भुला कर मेरे माथे पर ठंडे पानी की पट्टियां बदलती रही।मुझे शायद सुबह के तीन या चार बजे के आसपास नींद आ गयी होगी।सुबह जब उठा तो बुखार कम था रीना शायद अपने आफिस जा चुकी थी।

डॉक्टर के पास दवाई लेने गया तो डॉक्टर ने कहा बुखार तो नही है फिर भी आप ये दवाई रख लो अगर फिर आये तो खा लेना।उस दिन मैं कॉलेज भी नही गया। शाम को रीना मेरे लिये कुछ सेब और बिस्किट लायी जो मैंने और उसने चाय के साथ खा लिए।उस रात हम कुछ देर लॉन में भी बैठे।

अगले दिन सुबह सात बजे मेरी आँखें तेज खटर पटर की आवाजें सुनकर खुल गयी,वैसे मैं दस बजे तक सोता था। मकान मालकिन रीना के कमरे से एक मजदूर के साथ उसका सामान बाहर निकाल कर रखवा रही थी।मैं दौड़ कर वहाँ गया,और पूछा कि आप सामान क्यो निकलवा रही हो? उसने बताया कि यह कमरा किसी अन्य किरायेदार को देने के लिए साफ करा रही हूं। इतने में मेरी नजर कमरे के भीतर पड़ी।यह क्या चारो तरफ मकड़ी के जाले और धूल का अंबार जैसा मैंने पहले दिन देखा था। तो तो रीना कहाँ गयी मेरे मुँह से निकला।

रीना कौंन रीना वो तो दो महीने पहले ही अपने भाई के साथ अपने घर के लिए गयी थी। सुनते है रास्ते मे ही दोनो का भयंकर एक्सीडेंट हुआ था।मालकिन ने बताया।तो फिर वो तो रात तक यही थी। सुनकर बुढ़िया मुझे ऐसे देखने लगीं जैसे मैं किसी दूसरे ग्रह से आया जीव हूं।
नोट-कहानी कुछ ज्यादा लंबी हो गयी परंतु सत्य घटनाएं लंबी ही होती है।क्योंकि कल्पना नही करनी होती है।

पुनश्च- उस दिन के चार दिन बाद ही मैंने वह कमरा बदल दिया था।परंतु कॉलेज से निकलकर एक बस से उतरती सवारियां को देखकर ही वापस लौटता था। बाद में पता लगा कि उस एक्सीडेंट में रीना वही पर खत्म हो गयी थी परंतु उसका भाई हॉस्पिटल मे कुछ दिन रहने के बाद स्वस्थ्य हो गया था।


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