कमाल है कमाल है मचा हुआ बवाल है हड़बड़ी मन में है क्यों उठा रहे सवाल है क्या हुआ है क्या पता हर कोई ये पूछता सबको दिल की मत बता कुछ राज अपने तो छुपा जो हुआ नहीं अभी क्यों आ रहा ख्याल है अपने म
लक्ष्य...'दुनिया जीतने' निकले हो.......और 'एक हार' से हताश हो......कर बैठ गए, तुम्ही ही बताओ.......महज़ एक प्रयास में मेहनत........रंग लाती है कभी ? नहीं ना......?तो फिर क्यों मूर्खतापूर्ण भावों से...
एक तुम्हारा होना~तुमसे कही बातों का कोई अंत क्यो नही मिलता । हर बार कहकर सोचता हूँ अब आखिरी बात तो कह डाली मैंने , पर देखो न अंतिम दफा की कहन अपनी मेढ़ को तोड़कर बह चुकी है किसी ओर , और अब मैं इसे शब्द
करीब दो घंटे तक सबकी तस्वीरों पर खूब चर्चा हुई गलतियों और खूबियों को बताने के बाद उत्कर्ष वहां से चले गये, निष्कर्ष अब भी चुप रहा उसने काश्वी से कोई बात नहीं की, दोनों वहां से कोरिडोर की तरफ निकले, क
अपना पहला एसाइनमेंट देखने के लिये सभी एक्साइटेड हैं लेकिन वापस आने के बाद से काश्वी काफी बेचैन है, वो काफी देर से हॉल के बाहर कोरिडोर के एक छोर से दूसरे छोर तक चक्कर लगा रही है, निष्कर्ष काफी देर त
काश्वी अब थोड़ी कंफर्टेबल हो गई, काश्वी ने उत्कर्ष से पूछा, “आपने मेरी फोटोग्राफ देखी हैं?” उत्कर्ष ने सिर हिला कर हां कहा और ये भी कहा कि काश्वी को पहला प्राइज देने का आखिरी फैसला उन्होंने ही लिया था
यह कहानी समाज में हो रहे बदलाव पर आधार बिंदुओं को चिंहीत करता हैं। कहानी का फैक्ट मुल बिंदु से अलग है, कहानी के मुख्य पात्र में भिन्नता हैं ,सौरभ जो कि स्वभाव से प्रेक्टिकल हैं। वो चाहता हैं कि जो लड़क
धानी चुनर ओढ़ प्रकृति शिवजी को रिझाने लगी है हवा भी बादलों के साथ प्रेम गीत गुनगुनाने लगी है सावन में बारिश की बूंदें दिल में प्रीत जगाने लगी है पिया मिलन को आतुर गोरी ऐसे में अकुलान
गीत बरसती हुई कायनात हो , घनी अंधेरी रात हो ऐसे में हम तुम दोनों साथ हों, तो कोई बात बने बादल से छम छम शराब बरसे अंग अंग से नशीला शबाब छलके इश्क का नशा चढ रहा हलके हलके&n
बड़ी मस्त मस्त एक हसीना थी बड़ी खूबसूरत जैसे नगीना थी छू लो तो छुइमुई सी मुरझा जाये जरा सी धूप से वह कुम्हला जाये बात बात पर हाय, ऐसे शरमाए जैसे पूनम का चांद बदली में जाए
हमने तो आज तक यही सुना था कि हर लड़की हसीना ही होती है वह शक्ल सूरत से चाहे "टुनटुन" , शूर्पणखां या कुब्जा ही क्यों न हो । हसीना का एक सौन्दर्य शास्त्र होता है । वह चांद सी खूबसूरत होती है चाहे उसमें
हाल गर्दिश के सितारों सा हैदिल उलझें हुए तारों सा हैइक तरफ सांस बोझिल है मिरी दूसरी तरफ बेफिक्र आवारों सा हैउनकी हवाओं का रुख ना करवो शहर इश्क़ के मारो का हैकिसकी बनी है जो तू बना लेगाइश्क़ उतरते-च
हमें जिंदगी की हसरतें कम ही चाहिएख़ुशी को ख़ुशी नहीं इन्हें गम ही चाहिएतेरे रूखे मिजाजों से तंग हैं ऐ जिंदगीतू जो भी अंदाज दे मगर नरम ही चाहिएतेरी गर्दिशों की धूल से लिपटा हूँ ऐसेमेरे आईने को भी मेरी आँ
अमन आज जल्दी जल्दी बस स्टॉप की ओर जा रहा था । वह आज फिर से लेट था । अब तो उसकी फितरत सी हो गई थी लेट ऑफिस जाना और बॉस से डांट खाना । उसे दिल्ली में लाजपत नगर से गुड़गांव जाना होता था । वह पहले मेट्रो
गीत : बेदर्दी इश्क हाय बड़ा तरसाये दिल को कहीं भी चैन ना आये सारी रात आंखों में कटती जाये बेदर्दी इश्क हाय बड़ा तरसाये।। तेरी याद सताए सजन , दिल में उठती है अगन कह भी ना
तेरी याद की बदली जब छाती है रिमझिम सावन साथ ले आती है भीगने लगता है तपता हुआ मन ये बेजान जिंदगी थम सी जाती है वो बीते हुए पल तैरते हैं आंखों में जलन सी महसूस होती है सांस
गीत : सुनो प्रिये तुम्हारी उन आंखों से डर लगता है सुनो प्रिये तुम्हारी उन आंखों से डर लगता है खामोश जुबां बेजान बांहों से डर लगता है जब तुम झाड़ू लगाकर पोंछा
वो लम्हे कितने हसीं हुआ करते थे जब तुम्हारे हाथ हमें छुआ करते थे तन बदन में बिजली कौंध जाती थीदिले अरमान बेलगाम हुआ करते थे कितना खूबसूरत सा मंजर था वह तेरे मेरे इश्क का समंदर सा थ
सुंदर कांड आज सुबह सुबह सुंदर लाल जी हमारे मकान पर पधारे । कोरोना की घटना के बाद लोग दूसरे के घरों में जाने से ऐसे ही कतराने लगे थे जैसे सरकारी कर्मचारी ऑफिस जाने से , अध्यापक कक्षा में जाने से ,
परख लिया खुद को जब परखा तुझे, क्यों देखा नहीं पहले जो अब दिखा क्या वो प्यार था? जो लगा मुझे, क्यों खत्म हुआ फिर जब परखा, सजा भूल भी जाए, ना भूल पाएंगे तुझे टूटे तारे की तरह मेरा व