बिसाहड़ा वाया मलकपुर
हो गया वो ही बवंडर द्वार पर आकर खड़ा ,मलकपुर से था चला जो आ गया बिसाहड़ा .डर तो था मन में की इक दिन आएगा शायद ज़रूर ,देखता है क्योंकि वो बस आदमी कोई छड़ा .मै अकेला कब तलक छिपता फिरूंगा लाहिजाब ,ढूंढ मुझको ही रहा है गाँव का हर इक धड़ा .क्यों कहा , किसने कहा , क्या कहा और क्या सुना , हाँ मगर सुनकर उसे