4 दिसम्बर 2015
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डॉ.पुरुषोत्तम 'पुष्प' , लेखक , अनुवादक एवं मुक्त पत्रकार , प्रधान संपादक - त्रैमासिक हिन्दी शोध पत्रिका 'साहित्य अनुराग' एवं बहु विद्या - शाखीय - बहु भाषीय द्वै मासिक राष्ट्रीय शोध जर्नल 'रिसर्च इम्पैक्ट '.D
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हो गया वो ही बवंडर द्वार पर आकर खड़ा ,मलकपुर से था चला जो आ गया बिसाहड़ा .डर तो था मन में की इक दिन आएगा शायद ज़रूर ,देखता है क्योंकि वो बस आदमी कोई छड़ा .मै अकेला कब तलक छिपता फिरूंगा लाहिजाब ,ढूंढ मुझको ही रहा है गाँव का हर इक धड़ा .क्यों कहा , किसने कहा , क्या कहा और क्या सुना , हाँ मगर सुनकर उसे