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अध्याय पहला:-
दूसरा अध्याय:- 1996 से 2000 तक का सफर दीदी की सादी कि पूरी जवाबदारी मामा ने लिथि अब पिताजी के पास बेटी को दाहेज में देने के लिए भी कुछ नहीं था वो भी हर रिश्ते दारो से मांग मांग थो
आज मुझे दोस्तो की जरूरत पैड गई सब को फोन किये मगर नतीज़ा 0 जीरो निकला ना दोस्त काम आए ना रिस्तेदार मुझे नाही मुझे पैसो की जरूरत थी फिर भी कोई काम नहीं आया दो मजदूरों की जरूर