संरक्षण के प्रयास में सभी पक्षी प्रेमियों का योगदान आवश्यक
धार जिले की सरदारपुर तहसील में व् मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ़ के स्थानों के अलावा महाराष्ट्र,गुजरात, हरियाणा, आंध्रप्रदेश में भी ये देखे गए|ये खरमोर पक्षी प्रजनन काल हेतु उनके पसंदीदा स्थानों का चयन कैसे कर लेते है |ये शोध का विषय है | खरमोर पक्षी दक्षिण भारत की दिशा से उड़ान भरते हुए प्रति वर्ष आते है| कोमल घास में कुछ समय अपना प्रजननं काल व्यतीत कर दक्षिण एवं उत्तरी पूर्व भारत आदि की और लौट जाते है | दुनिया भर में कई पशु -पक्षी ऐसे है जो अपने मनपसंद स्थान का चयन अपनी याददाश्त के जरिये कर लेते है| बड़ी तेजी से विलुप्त हो रही प्रजातियों में शामिल खरमोर पक्षियों के जोड़ो का सरदारपुर अभ्यारण में जुलाई से अक्टूबर तक यहाँ पक्षी प्रजनन व्इ वंश संवर्धन करके वापस अपने पूर्व स्थान की और उड़ जाते है| पक्षियों की अलग-अलग प्रजातियों में मादा को रिझाने के लिए नर तमाम किस्म के करतब दिखाते हैं। जैसे मोर करते हैं।खरमोर भी अपने अद्भुत उछाल के लिए जाने जाते हैं। प्रजनन काल में वे टिटकारी जैसी आवाज निकालते हुए दो-दो मीटर ऊंची उछाल लगाते हैं। इस दौरान उनकी टिटकारी की आवाज काफी दूर दूर तक सुनाई पड़ती है | मादा खरमोर पक्षी को आकर्षित करने के लिए नर खरमोर तेज गति से विशेष प्रकार की आवाजे पैदा करता हे साथ ही करतब दिखा कर रिझाने का प्रयास करता है | लेकिन, अब इस पक्षी को देखना लगातार दुर्लभ होता जा रहा है। खरमोर की आबादी समाप्त होने के पीछे कई कारणों को जिम्मेदार माना जाता है।खेती में कीटनाशकों के अत्यधिक प्रयोग के चलते कीटों की संख्या बेहद कम होती जा रही है। इसके चलते पक्षी के सामने पेट भरने की समस्या पैदा हो गई है। यह घास वाले मैदानों में रहने वाला पक्षी है और इसके रहवास में ज्यादा से ज्यादा अब खेती होने लगी है। इससे इस पक्षी को रहने के लिए जगह नहीं मिल रही है। घास वाले मैदानों में जमीन पर ही यह अपना घोसला बनाता है। लेकिन, आवारा कुत्ते एवं जंगली जानवर इनके घोंसले को नष्ट कर इन पक्षियों के चूजों का शिकार कर लेते हैं।खरमोर पक्षी का दूसरा नाम चिन मोर और केर मोर से भी जाना जाता हे।खरमोर पक्षी के ऊंचाई 50 सेंटीमीटर और वजन1किलो से लेकर 2 किलो तक होता हे।खरमोर पक्षी का सिर और गर्दन काले रंग की होती हे। नर खरमोर पक्षी के सिर में आकर्षित कलगी होती हे।खरमोर पक्षी अपनी लम्बी टांगो की वजह से तेजी से दौड़ भी सकते हे।इनके लिए ,संरक्षित स्थानों को दूषित वातावरण से मुक्त रखना होगा ।अवैध शिकार करने वालों पर कड़ी कार्रवाई भी सुनिश्चित करना होगी ।जिससे पक्षियों में वृद्धि दिखाई देकर लुप्तप्राय प्रजाति को बचाया जा सके एवं नई प्रजाति के पक्षियों की खोज एवं शोध को जारी रखा जाकर इन पक्षियों के साथ प्राकृतिक आपदा ,मौसम के पूर्व संकेत बताने वाले अन्य पक्षियों को भी बचाया जा सके ।
संजय वर्मा 'दॄष्टि '
मनावर (धार )मप्र