क्या, सती प्रथा सनातन धर्म की देन है? आओ विचार करें.दोस्तों!
कौआ और कोयल बेशक एक रंग के होते हैं। पर वसंत ऋतु आने पर दोनो का भेद खुल जाता है। जब कोयल मीठे स्वर में गाती है तो सब उसको पहचान ही जाते हैं।
कुछ इतिहास कार, भारत मे हर समय बुराइयाँ ही ढूंढते रहते हैं, हर गलत बात को वो सनातन समाज की देन बता दिया करते हैं, आज इस पर ही विचार करेंगे.
इन लोगों ने सती प्रथा को भी सदा हम लोगों और हमारे धर्म से जोड़ा है। ये जताने की कौशिस की है कि सनातनी लोग कितने खराब थे, जो नारियों को जिंदा पति के साथ जला दिया करते थे। आज के लेख में मै उनका भंडा फोड़ करूँगा।
सनातन धर्म के पुराने ग्रन्थों में इस प्रथा का कहीं भी कोई प्रमाण मुझे आज तक नही मिल पाया।
सब से पहले आप रामायण काल को ही देख लें।
जब महाराज दशरथ जी की मृत्यु हुई तो क्या तीनों माताएं उनके साथ सती हुई, वो तो एक आदर्श नारियाँ थी। इसका अर्थ ये हुआ कि ऐसी कोई प्रथा थी ही नही।
गहि पद भरत मातु सब राखी।
रही रानी दर्शन अभिलाषी।।
क्या केवल माताएं अपने सती धर्म को छोड़कर भरत जी की बात मानकर सती होने से बची। ऐसा हो ही नहीं सकता।
बल्कि इसका एक दूसरा पक्ष है।
हमारे यहाँ आज भी जब कोई व्यक्ति मरता है तो उसकी पत्नी उसके साथ ग्राम की सीमा तक जाती है, इसका ये भाव रहता था, कि अब मै ग्राम से दूर जंगल में अपना शेष जीवन बिताऊंगी, अब मेरा भरण पोषण कौन करेगा, तब उसके नजदीक वाला जो भी सम्बन्धी चाहे वह बेटा हो या देवर या जेठ हो वह कहता था कि आप को कहीं जाने की जरूरत नही है। आपका भरण पोषण हम करेंगे। इस प्रकार वह फिर से सीमा में प्रविष्ट होती थी।
वही रिवाज आज तक चलता आ रहा है, जैसे भरत जी ने माताओं के चरण पकड़ कर उन्हे रक्खा और कोई कष्ट न होने दिया।
अब आगे आप बाली जी का प्रसँग देखें, बाली की पत्नी तारा क्यों सती नही हुई?
यह प्रदेश भी अवध के ही आधीन था, सब भारत में एक ही संस्कृति थी। इसलिए यह दूसरा प्रमाण है कि यहाँ ये प्रथा कभी थी ही नहीं।
माता अनुसुइया जी को पति के होते हुए सती का दर्जा प्राप्त था। इसका अर्थ हुआ कि सती एक सम्मान सूचक शब्द के अलावा कुछ नही था।
तुलसी दास जी ने जलन्धर् की पत्नी वृंदा को भी पति के जीते जी सती लिखा,
यहाँ तक कि रावण के मरने पर मंदोदरी भी सती नही हुई।
मेघनाद के मरने पर सुलोचना भी सती नही हुई। बाबा तुलसी ने अपने काव्य में इसका कहीं कोई जिकर नही किया।
हाँ उसे सती की पदवी जरूर प्राप्त है पर इसलिए नही कि वह मेघनाद के साथ ही जली बल्कि इस लिए कि वो एक महान नारी थी, जब रावण ने मेघनाद का सिर जो राम जी के शिविर में था, उसे लाने मे asmrthta जताई तो ये देवी अपने पति का सिर लेने खुद पहुँच गई, क्योंकि इसे बिना सिर के पति का अंतिम snskar मंजूर नही था।
जब मानस लिखी गई तो वह सम्वत १६३१ था। अर्थात आज से केवल ४५० वर्ष पूर्व के लगभग, ये कोई ज्यादा पुरानी बात नहीं हुई, मुगलों का राज चल रहा था, अगर ये प्रथा मुगल काल में भी रही होती तो उसका जिकर वो सुलोचना के प्रसँग में क्यों छिपाते। इन सब बातों से पता चल रहा है कि ये प्रथा थी है नही।
परंतु कुछ वाम पंथ से प्रेरित लेखकों ने जरूर लिखा कि सुलोचना मेघनाद के साथ सती हुई थी, ये प्रमाण हो ही नही सकता, इनका काम तो है ही झूठ फैलाना।
महाभारत काल में सत्य वती भी शांतनु के साथ सती नहीं हुई।
न ही कुंती माता पांडु महाराज के साथ सती हुई। हाँ नकुल सहदेव की माता माद्री पति की मृत्यु का आघात न सह सकी और उसका प्राणांत हो गया.
अम्बा, अंबिका, आदि राणियां विचित्र वीर्य व उनके भाई के मरने पर कहाँ सती हुई, जरा बताओ?
अपवाद स्वरूप कोई एक आध् ऐसी घटना अगर खुद किसी नारी ने अपने से की हो तो उसको प्रथा नही माना जा सकता।
इससे भी बढ़कर प्रमाण गीता जी में है।
जहाँ अर्जुन करिशन जी से साफ कह रहे हैं कि प्रभु युद्ध में इतने लोग मर जायेंगे तो उनकी पत्नियों का क्या होगा, वो व्यभिचार में लिप्त होंगी और वर्ण snkrta फैल जायेगी। अगर सती प्रथा होती तो अर्जुन ऐसा क्यों कहते?
इतिहास में अनेकों घटनाएं हुई मगर ये प्रथा कहीं नही दिखी,
चन्द्र गुप्त मौर्य की माँ मुरा कहाँ सती हुई।
सम्राट अशोक की दादी चन्द्र गुप्त के मरने पर क्यों सती नही हुई?
रानी लक्ष्मी बाई क्यों अपने पति के साथ सती नही हुई।
दुर्योधन आदि की पत्नियां क्यों सती नही हुई?
इतिहास में जो सतीयां हुई वो अंगुली पर गिनी जा सकती हैं इसका अर्थ है कि ये प्रथा थी ही नही।
अगर ये प्रथा होती तो हमारे खान दान में मेरी दादी माँ ने क्यों नही बताया। जबकि हमारे बहुत से पूर्वज औरतों से पहले ही मर गए थे, तो सती प्रथा का जिकर तो जरूर आता,
यहाँ तक कि हमारे गाँव व aas पास के गाँव कस्बों मे भी कभी ऐसी घटनाएं सामने नहीं आई,
अगर एक दो भी होती तो उस जमाने मे जरा जरा सी बात पर कहनियाँ बन जाती थी और दादा दादी या नाना नानी उसको बच्चों को सुनाते रहते थे, क्योंकि t v आदि तो थे ही नहीं.
या फिर गाँव क्सबों मे सवांग पार्टियां आती थी जो इतिहास की घटनाओं का मन्चन करके लोगों का मनोरन्जन करती थी.
लेकिन सती प्रथा का कोई मन्चन होता हुआ हमारे दादा आदि ने कभी नहीं देखा, न हमे सुनाया.
मुगलों के आने के बाद इस देश में जौहर की प्रथा जरूर शुरू हुई। वो भी इसलिए कि मुगल युद्ध जीतने के बाद नारियों पर बहुत अत्याचार करते थे, उनको मंडियों में बोली लगाकर बेचते थे। इस जलालत से बचने के लिए हिंदू नारियाँ जौहर करने लग पड़ी थी।
पर्दा प्रथा भी मुगलों के शासन के बाद ही शुरू हुई।
राजा राम मोहन राय अंग्रेजों का पिट्ठू था, वह यहाँ इसाइयत फैलाना चाहता था, उसने ऐसा किया भी।
उसने सती प्रथा का झूठा आरोप हिंदू समाज पर लगाया और मुगलों को साफ साफ बचा गया, जो जौहर के मुख्य दोषी थे।
इस प्रकार उसने एक घटना जो पता नही सच भी थी या नहीं, उस अपनी भाभी को एक एजेंडे के तहत इस्तेमाल कर लिया। और ऐसा सिद्ध कर दिया कि सती प्रथा सनातन समाज की देन थी,।।
पर ये प्रथा चाहे बहुत कम कहीं दिखी हो उसका विरोध जायज था, राजा राम मोहन राय को इसके लिए धन्यवाद जरूर दे सकते हैं, क्योंकि बुराई चाहे अल्प मात्रा में भी हो उसका उन्मूलन होना ही चाहिए। परंतु ये बहुत गलत हुआ जो इसको सनातनी प्रथा कहा गया,
इस सब दुष्कृत्य का ठीकरा फोड़ना तो चाहिए था मुगल लुटेरों पर, परंतु इस नेसारा दोष हिंदू समाज पर ही डाल दिया ताकि हम कुंठित होते रहें, बचपन मे मै जब किताबों में ये सब पढ़ता था तो विशेष jankari न होने से कुंठा का शिकार रहा। पर जब बड़ा होकर इतिहास की जान कारी ली तब समझ आया कि ये हमारे खिलाफ एक षड् यन्त्र ही था, सच्चाई कुछ और ही थी।
बाल विवाह के लिए भी मुगल ही जिम्मेदार थे।
आज हम सब को राजा राम मोहन राय के बारे में विश्लेषण जरूर करना चाहिए कि वो हमारा शुभ चिंतक था या दुश्मन
अगर ये झूट मोहन राय ने नही फैलाया तो सीधे सीधे उस समय के लेखक जिन्होंने बच्चों की किताबों में इसका जिम्मेदार हिंदू समाज को लिखा उनकी कड़े शब्दों में निंदा होनी चाहिये। हमें वाम पंथियों के लिखे सभी लेखों का पहले सही से निरीक्षण करना होगा, तब अपनी राय बनानी होगी नहीं तो हम उनही का एजेंडा आगे बढ़ाते जायेंगे जो वो लोग चाहते ही हैं.
सच कभी नही दब सकता, आज समय की मांग है कि हम तथ्यों के द्वारा समाज का सही मार्ग दर्शन करें।
आपकी सेवा में
मंगत गुरुग्राम, anpadh Ki diary🙏