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सवाल सियासी ‘आनंद’ का है...!

9 नवम्बर 2016

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मध्यप्रदेश में आनंद विभाग गठन के गठन को मंजूरी मिल चुकी है। संभव है, कि बहुत जल्द ही इससे जुड़ी गतिविधि सूबे की सरकार अमल में लाना शुरू कर दे। कुछ अलग सोचकर उसे अमलीजामा पहनाने में महारथी शिवराज सिंह की यह मंशा भी कई मायनों में खास है। हालांकि यह बात अलग है, कि अपनी इस अद्वितीय मंशा को धरातल पर लाने का उनका मसौदा क्या होगा ? यह सबकुछ अभी तक तय नहीं हो सका। यही कारण है, कि आमजन के मन में इसे लेकर जितना उत्साह है, उससे कहीं ज्यादा उत्सुकता भी पूरे मसले में अपनी मौजूदगी दर्ज करा रही है।


आम के मन में आनंद घुलेगा या नहीं, इस बात का पता चलेगा जब चलेगा। लेकिन इस पूरे घटनाक्रम को यदि बारीकी से समझा जाए, तो यह बात जरूर निकलकर सामने आती है, कि आनंद विभाग की आड़ में खुद के सियासी आनंद की पूरी व्यवस्था करने में जुटी है शिवराज सिंह की सरकार। दिलचस्प पहलू यह भी है, कि सरकार के आनंद विभाग का मसौदा अभी भले ही तैयार नहीं हुआ हो, लेकिन सरकार ने खुद के सियासी फायदे का खाका पूरी तरह खीच लिया है। संभव है, कि अपनी इस कोशिश के नाम पर 2018 के चुनाव में काफी कुछ हासिल करले शिवराज सरकार। और वो कैसे, इसकी भी अपनी एक वाजिब वजह है।


दरअसल यदि देखा जाए, तो इस मंत्रालय के गठन के पीछे सरकार का सीधा उद्देश्य सूबे में प्रमुख चुनावी मुद्दों को बदलना है। वो मुद्दे जिन पर लंबे वक्त से राजनीति क दल चुनाव लड़ते और हारते-जीतते आ रहे हैं। मसलन बिजली, पानी और सड़क। जाहिर है, इन तीन मुद्दों को हथियार बनाकर ही साल 2003 से लेकर 2013 तक भाजपा हर दफा सरकार में आई है। और सत्ता तक सुगमता से पहुंचने का ये रास्ता भाजपा और उसकी सरकार को कुछ इस कदर रास आ गया है, कि लोकसभा चुनाव 2014 के साथ तमाम उपचुनाव में भी वह इन्हें हथियार बनाने से नहीं चूकी। और हर चुनाव में सूबे के मुखिया सूबे की जनता को दिग्विजय शासनकाल का डर दिखाते हैं, और हासिल कर लेते हैं उसका विश्वास।


यकीनन चुनाव लड़ने और जीतने के लिए ये मुद्दे शिवराज सिंह के लिए किसी बड़े हथियार से कम नहीं है, लेकिन हर दफा इस हथियार के प्रयोग ने कहीं न कहीं शिवराज की असल साख को ही दांव पर लगा दिया है। और प्रदेश के सियासी गलियारों में यह सवाल उठने लगे हैं। कि आखिर क्या वजह है, कि शिवराज सिंह को किसी भी चुनाव को जीतने के लिए दिग्वजिय शासनकाल की तरफ ताकना पड़ता है। ऐसा क्या कारण हैं, कि तीसरी पारी के लिए तैयार बैठे शिवराज कभी भी खुद की होड़ शिवराज वन और शिवराज टू से नहीं करते। जाहिर है, कि इस मुद्दे को साल 2018 में शिवराज सिंह के विरोधी और दमखम से उठाएंगे। और उनसे सवाल पूछा जाएगा, कि आखिर क्यों आज तक सूबे में बिजली, पानी, सड़क ही मुख्य मुद्दा बना हुआ है।


प्रदेश की सियासत को भली भांती समझने वाले शिवराज सिंह चौहान यह बात भी भांप गए हैं। कि साल 2018 में उनका विरोधी खेमा इस बात को उठाने के लिए पूरी तरह तैयार है। और उनके सामने यही बात प्रमुखता से उठाई जाएगी, कि इतने लंबे शासनकाल के बावजूद भी वह मध्यप्रदेश को बुनियादी जरूरतों से क्यों नहीं उबार सके। इन सवाल का जवाब देने के लिए जरूरी है, कि शिवराज सिंह चौहान कांग्रेस के नाकामयाबी नहीं, बल्कि अपनी कामयाबी को मुद्दा बनाकर जनता के बीच जाएं। कामयाबी भी ऐसी, जिसका विपक्ष के पास कोई तोड़ नहीं हो। ऐसे में जाहिर है, कि वो आनंद विभाग को अपनी उस खूबी के तौर पर पेश करने की जुगत मे हैं। जिसका वो सियासी फायदा हासिल कर सकें। गौर करने वाली बात यह है, कि यहां उनकी सोच महज प्रदेश की जनता को एक विभाग विशेष की सौगात देने की नहीं है, बल्कि इसके गठन के साथ वह इस बात को भी साबित करना चाहते हैं, कि प्रदेश की जनता के पास हर जरूरी चीज पहुंच चुकी है। कौने कौने तक बिजली और सड़क पहुंच गई है। युवाओं को रोजगार मिल गया है। तीर्थ यात्रा एं करके बुजुर्ग खुश हैं। सरकार बेटियों को पढ़ाने के साथ उनकी शादियां भी करवा रही है। सबकुछ मिल गया है प्रदेश को। बस अब उसे आनंद चाहिए, और उसे वो आनंद देगा आनंद विभाग।


आनंद विभाग का स्वरूप कैसा होगा, ये कैसे काम करेगा। इस विषय में अब तक कुछ भी साफ नहीं है। संभव है, कि आने वाले तीन से चार महीने का वक्त इस अस्तित्व में आने में लग जाए। उसके बाद 2018 के चुनाव में करीब दो साल का समय शेष रह जाएगा। फितरतन भाजपा 2017 के अंत में ही चुनावी मैदान में उतर जाएगी। ऐसे में संबंधित मंत्रालय के मूल्यांकन के लिए विपक्ष के पास ज्यादा वक्त नहीं होगा। और सरकार की कोशिश रहेगी, कि अपनी बेहतरीन ब्रांडिंग पॉलिसी के जरिए इस विभाग के सकारात्मक पहलू जनता तक पहुंचाए जाएं। यदि अपनी इस कवायद में उसे सफलता मिलती है, तो सूबे की राजनीति में यह एक नया प्रयोग होगा। और इतिहास गवाह रहा है, कि हिंदुस्तान की आवाम ने हमेशा प्रयोगों को स्वीकार किया है। और यदि आनंद का यह प्रयोग प्रदेश की जनता स्वीकार करती है। तो शिवराज सिंह का सियासी आनंद हासिल करना तय है।


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