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मैं बिंब नहीं कोई ऐसा. जिसे कैद कर सके कोई दर्पण. मैं मुक्त हवा सा मनचला. घर मेरा है धरती अंबर मेरे कदम उठे फिर न रुकें. चाहे रात हो काली अमावस की. मैं खुदको जलाता सूरज हूं. मुझे अंधेरा का क्या डर.

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hemantschaturvedi

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प्रचार फोबिया की शिकार भाजपा !

9 नवम्बर 2016
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किसी जमाने एक कहावत हुआ करती थी, नेकी कर दरिया में डाल। कहावत तो आज के समय में भी खूब चलती है, लेकिन अब मानो इससे कोई इत्तेफाक नहीं रखता। और जमाने ने इसे तोड़ मरोड़कर कुछ ऐसा बना दिया है, कि नेकी कर बड़े बड़े बैनर पोस्टर छपवा और शहर के मैन चौराहे पर लगवा दे। क्योंकि जब तु

सवाल सियासी ‘आनंद’ का है...!

9 नवम्बर 2016
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मध्यप्रदेश में आनंद विभाग गठन के गठन को मंजूरी मिल चुकी है। संभव है, कि बहुत जल्द ही इससे जुड़ी गतिविधि सूबे की सरकार अमल में लाना शुरू कर दे। कुछ अलग सोचकर उसे अमलीजामा पहनाने में महारथी शिवराज सिंह की यह मंशा भी कई मायनों में खास है। हालांकि यह बात अलग है, कि अपनी इस अद्वितीय मंशा को धरातल पर लाने

मैं कांग्रेस बोल रही हूं...मध्यप्रदेश कांग्रेस !

2 अप्रैल 2016
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                  मैं कांग्रेस बोल रही हूं, मध्य प्रदेश कांग्रेस। वहीं कांग्रेस, जोपूरे चार दशकों तक काबिज रही सूबे की सत्ता पर। वही कांग्रेस, जिसने एक समय अखंडराज किया हिन्दुस्तान के दिल पर। वहीं कांग्रेस, जिसने मध्य भारत को बनायामध्यप्रदेश।क्या दिन थे वो भी, हर कुछ फीका फीफा लगता था मेरी शान के सा

मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के नाम खुला खत

2 अप्रैल 2016
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               प्रति शिवराज सिंह चौहानमुख्यमंत्री, मप्र               आदरणीयमुख्यमंत्री जी। न तो मैं इस काबिल हूं, कि आपको कोई सलाह दे सकूं। और न ही मैंइतनी हिमाकत कर सकता हूं, कि आपके कुछ किए हुए को गलत ठहरा सकूं। मैं तो सिर्फ इसखुले खत के जरिए आपके सामने अपना दुखड़ा व्यक्त करना चाहता हूं। जो कि सि

कांग्रेस सांसद एवं पूर्व केन्द्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के नाम खुला खत

2 अप्रैल 2016
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                    आदरणीयज्योतिरादित्य सिंधिया जीपूर्व केन्द्रीय मंत्री एवं कांग्रेस सांसद               महोदय,आपको लिखे जाने वाले इस खत के पीछे मेरा औचित्य न तो किसी तरह के स्वार्थ सेप्रेरित है, और न व्यक्तिगत तौर पर आपसे मेरा विशेष जुड़ाव। बस लोकतंत्र के चौथेस्तंभ से जुड़ा उसका एक सजग प्रहरी होने

मैं बिना कलम का कवि हूं

12 मई 2015
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मैं पतझड़ वाला मौसम हूं मैं अंधेरे से रोशन हूं मैं आसमां हूं बिन तारों का मैं मुरझाया इक गुलशन हूं मैं इक बंजर जमीं हूं मैं बिन रोशनी का रवि हूं मैं समंदर हुूं बिन पानी का मैं बिना कलम का कवि हूं... मैं बिना कलम का कवि हूं वो सपना भी बड़ा सस्ता है, जो मेरी आंखों में बसता है. कुछ हालत मेरी ऐसी है,

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