आक्रोश से फाड़ दूँ पन्नो को,
या गुस्सा उतारूँ सड़कों पर ?
अपने खौलते खून को देखूँ ,
या निंदा देखूँ टीवी पर ?
मैं माँ - बहन का दर्द लिखूँ ,
या पत्नी की आँखें सर्द लिखूँ ?
मुल्क के हालात लिखूँ ,
या अपने जज्बात लिखूँ ?
हर किसी का जोश लिखूँ ,
या नेताओं का चोर लिखूँ ?
सियासत का पाखण्ड लिखूँ ,
या उसका का खेल लिखूँ ?
शब्द हो गए दफन ,
बोलो - बोलो मैं क्या लिखूँ ?
संजय