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शब्द हो गए दफन , आपकी शहादत को क्या लिखूं ?

25 अप्रैल 2017

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आक्रोश से फाड़ दूँ पन्नो को,


या गुस्सा उतारूँ सड़कों पर ?



अपने खौलते खून को देखूँ ,


या निंदा देखूँ टीवी पर ?



मैं माँ - बहन का दर्द लिखूँ ,


या पत्नी की आँखें सर्द लिखूँ ?



मुल्क के हालात लिखूँ ,


या अपने जज्बात लिखूँ ?



हर किसी का जोश लिखूँ ,


या नेताओं का चोर लिखूँ ?



सियासत का पाखण्ड लिखूँ ,


या उसका का खेल लिखूँ ?



शब्द हो गए दफन ,


बोलो - बोलो मैं क्या लिखूँ ?



संजय

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रेणु

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सचमुच ऐसी शाहदत के लिए सववेदना का हर शब्द अपर्याप्त है --सचमुच सियासत का पाखंडी चेहरा बड़ा वीभत्स है -- मैं भी निशब्द हूँ ! !

26 अप्रैल 2017

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शब्द हो गए दफन , आपकी शहादत को क्या लिखूं ?

25 अप्रैल 2017
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आक्रोश से फाड़ दूँ पन्नो को,या गुस्सा उतारूँ सड़कों पर ?अपने खौलते खून को देखूँ ,या निंदा देखूँ टीवी पर ?मैं माँ - बहन का दर्द लिखूँ ,या पत्नी की आँखें सर्द लिखूँ ?मुल्क के हालात लिखूँ ,या अपने जज्बात लिखूँ ?हर किसी का जोश लिखूँ ,या नेताओ

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जाँबाज़ सैनिकों के लिए सोचना होगा।

26 अप्रैल 2017
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परिवार से दूर। बच्चों से दूर । पत्नी से दूर । मां से दूर । हर वक्त मौत के साए में जिंदगी गुजारते हमारे सैनिक ।शहीद हो गए। शहीदी के बाद। फूल , माला , निंदा , वायदे । संवेदना के कुछ शब्द। बहूत कुछ। फिर वही बात। सबबक्से में बंद। उनको भूला देना।हम आजादी का आनंद लेते हैं।

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