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संजय मेहता की डायरी

संजय मेहता

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sanjay mehta ki dir

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पुस्तक के भाग

1

शब्द हो गए दफन , आपकी शहादत को क्या लिखूं ?

25 अप्रैल 2017
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1

आक्रोश से फाड़ दूँ पन्नो को,या गुस्सा उतारूँ सड़कों पर ?अपने खौलते खून को देखूँ ,या निंदा देखूँ टीवी पर ?मैं माँ - बहन का दर्द लिखूँ ,या पत्नी की आँखें सर्द लिखूँ ?मुल्क के हालात लिखूँ ,या अपने जज्बात लिखूँ ?हर किसी का जोश लिखूँ ,या नेताओ

2

जाँबाज़ सैनिकों के लिए सोचना होगा।

26 अप्रैल 2017
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5

परिवार से दूर। बच्चों से दूर । पत्नी से दूर । मां से दूर । हर वक्त मौत के साए में जिंदगी गुजारते हमारे सैनिक ।शहीद हो गए। शहीदी के बाद। फूल , माला , निंदा , वायदे । संवेदना के कुछ शब्द। बहूत कुछ। फिर वही बात। सबबक्से में बंद। उनको भूला देना।हम आजादी का आनंद लेते हैं।

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