तेज उड़ते शहरी कबूतर आए थे देहात से,
मतला निकालना इस जाहिल की बात से,
रंगीन पंख हैं टूटे जिस पर माँस ताजा हैं,
मुंतज़िर राहे फिरा़क पर बैठा हूँ रात से।।
3 अक्टूबर 2019
तेज उड़ते शहरी कबूतर आए थे देहात से,
मतला निकालना इस जाहिल की बात से,
रंगीन पंख हैं टूटे जिस पर माँस ताजा हैं,
मुंतज़िर राहे फिरा़क पर बैठा हूँ रात से।।