मानव मन प्रेम का भूखा है । वह प्रेम के लिए बड़े से बड़ा बलिदान करने को तैयार हो जाता है। प्रेम का यह रूप अलौकिक या लौकिक कोई भी हो सकता है ।
ईश्वर की प्रतिमा की एक झलक पाने के लिए, उनके दर्शन पाने के लिए भक्त लालायित रहते हैं । मंदिर में प्रभु की प्रतिमा के सामने भक्त दूर-दूर से आकर उनके क्षणिक दर्शन से अगाध सुख प्राप्त करते हैं। मीलों दूर से यात्रा करके आने वाले दर्शकों को कई बार कुछ क्षण के लिए ही प्रभु दर्शन हो पाते हैं।
इसी प्रकार से आपसी संबंधों में भी क्षणिक प्रेम का महत्त्व है। पारिवारिक सदस्यों से मिलने के लिए लोग दूर दूर से चले आते हैं । कभी कभी तो लंबी यात्रा के बाद भी मिलने का समय क्षणिक ही होता है किंतु मन का संतोष क्षणिक नहीं होता, यह दीर्घ कालिक होता है। वस्तुतः मानव जीवन ही क्षणिक है, इसे जितने अधिक प्रेम भाव से जिया जाए उतना ही सार्थक होगा।
आज के युग में दिग्भ्रमित युवा क्षणिक शारीरिक सुख पाने के लिए अपना और अपने साथी का जीवन बर्बाद करने में तनिक भी संकोच नहीं करते। भावनाओं के वशीभूत होकर बहना जीवन भर का पछतावे का कारण हो सकता है। इसीलिए मनुष्य को विवेक से काम लेना चाहिए तथा क्षणिक आवेग में नहीं आना चाहिए।
कहीं क्षणिक प्रेम दीर्घ कालीन संतोष का कारण बनता है तो कहीं चिर दुख का।
___पूर्णिमा बेदार श्रीवास्तव
लखनऊ।