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सूरज दादा (बाल दिवस पर विशेष)पूरब से जब निकले सूरजखुश होकर मुस्काता वो।चलते चलते जब थक जातागुस्सा खूब दिखाता वो ।।भूख ज़ोर से जब लगती तोभोजन भी न पाता वो।दूपहरी में फिर अपना रौद्र रूप दिखलाता वो
मानव मन प्रेम का भूखा है । वह प्रेम के लिए बड़े से बड़ा बलिदान करने को तैयार हो जाता है। प्रेम का यह रूप अलौकिक या लौकिक कोई भी हो सकता है । &n