सूरज दादा (बाल दिवस पर विशेष)
पूरब से जब निकले सूरज
खुश होकर मुस्काता वो।
चलते चलते जब थक जाता
गुस्सा खूब दिखाता वो ।।
भूख ज़ोर से जब लगती तो
भोजन भी न पाता वो।
दूपहरी में फिर अपना
रौद्र रूप दिखलाता वो।।
मां से बोला सूरज दादा
कुछ तो रख दो खाने को।
मां बोली, अब आई सर्दी
देती कुछ भूख मिटाने को।।
एक शर्त है मेरी भी यह
खुश रहना तुम दिन भर ।
सूरज दादा हंसकर बोले
हां मां, ये भी दो तुम मुझको वर।।
पूर्णिमा बेदार श्रीवास्तव,
लखनऊ।