शिक्षा के क्षेत्र में कार्य कर रही सरकारी विद्यालय और विभिन्न संस्थाओं ने बच्चों को केन्द्र में रख कर बहुत सारी योजनाएँ और पाठ्यक्रम बनाए हैं I इन योजनाओं और पाठ्यक्रम को सही तरीके से लागू करने और उसकी उपयोगिता सिद्ध करने में ही सरकारी तंत्र लगा रहता है फिर भी अधिकांश शैक्षिक मुद्दों पर यह तंत्र विफल ही रहा है I ऐसे सभी प्रयासों के बावजूद हम समुचित रूप में शैक्षिक वातावरण का निर्माण ही नहीं कर पा रहे हैं I सरकारी तंत्र के साथ मिलकर विभिन्न संस्थाओं ने भी अपनी पहचान बनाने के मकसद से शैक्षिक विकास हेतु हस्तक्षेप करने का कार्य निरंतर जारी रखा है जो काफी नहीं है और उसकी
दिशा भी सही नहीं है, वे केवल अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहे हैं, वे पिछले 10 वर्षों में अपने किए गए कार्यों और बच्चों के शैक्षिक विकास का ब्यौरा भी नहीं दे सकते, वे हर साल बच्चे या स्थान बदल लेते हैं, उनसे सवाल पूछने वाला ही कोई नहीं कि उनके कार्यों से क्या प्रगट हुई, यदि समुचित प्रगति नहीं हुई तो उन्हें कार्य करने की अनुमति क्यों देनी चाहिए?
शिक्षक समूह का भी शैक्षिक विकास की जिम्मेवारी के प्रति उदासीन रहना, समुदाय और जन प्रतिनिधियों का निरंकुश रवैया आदि संक्रमण बच्चों के शैक्षिक विकास में भयानक रोग है जो भ्रष्ट सरकारी अधिकारी द्वारा प्रायोजित है I जब तक ऐसे संक्रामक रोग को जड़ से समूल नष्ट नहीं किया जाएगा तब तक कोई भी समाज शिक्षित नहीं हो सकता और न बच्चों की शैक्षिक दशा में सुधार हो सकता है I