हम अपनी पढ़ाई के दिनों से अपने गुरू जी को देखते, सुनते और उनसे सीखते रहे हैं I गुरूजी की सीख से हमने जीवन को बेहतर रूप से सँवारने की दिशा में निरंतर प्रयास भी किया है I आज उन गुरूजी में से किसी एक गुरूजी की सीख, पाठ को प्रस्तुत करने, हावभाव सेवाचन करने, विषय-वस्तु की समझ बनाने और सिखाने के तरीके हमें एक शिक्षक बनने को प्रेरित करता है I उनकी प्रेरणा से ही वर्तमान समय की शिक्षा जगत में हम एक शिक्षक बनने की राह पर हैं, जहाँ संसाधनों की भरमार होते हुए भी हम अनेक चुनौतियों का सामना कर रहे हैं I ऐसी चुनौतियाँ अधिकांश शिक्षकों के समक्ष है, किन्तु कई गुरू जी ने उन्हीं संसाधनों को बेहतर रूप से इस्तेमाल कर सभी चुनौतियों को दरकिनार कर दिया है और वे अपने विद्यालय ही नहीं बल्कि शिक्षा जगत में अपनी शिक्षण कला को सुशोभित कर रहे हैं I आखिर उन गुरूजी के पास ऐसी कौन-सी विधा है या जज्बा है जो उन्हें विशिष्ट पहचान दिला रही है I हमें गंभीरता से इस विषय पर चर्चा करनी चाहिए कि हम उनके जैसा जज्बा क्यों नहीं ला रहे, उन विधाओं को अपने शिक्षण क्रियाकलापों में क्यों नहीं शामिल कर रहे?
आज हम शिक्षक दिवस पर एक-दूसरे को शुभकामनाएँ भेज कर और बच्चों से मुखातिब होकर औपचारिकता निभा ले रहे हैं I अधिकांश शिक्षक आजकल के बच्चे, अभिभावक, समुदाय और वातावरण को कसूरवार मानते हैं I कुछ शिक्षक सरकारी तंत्र को जिम्मेवार समझते हैं I हम यह मानने को तैयार ही नहीं कि एक ईमानदार प्रयास, धैर्य, परिश्रम और निरंतर अभ्यास से ऐसा संभव है कि हम शिक्षक समुदाय एक आदर्श गुरू जी की परिभाषा को चरितार्थ कर सकते हैं I
क्या हम शिक्षक समुदाय इसके लिए कुछ चीजों का त्याग कर एक नया प्रेरणादायी पथ बना कर चलने और सीखने-सिखाने की धारा में अपने कदम बढ़ाने को तैयार हैं? मुझे ऐसा लगता है कि हम ऐसे ईमानदार प्रयास के साथ शिक्षक दिवस को सुशोभित करना चाहिए, औपचारिकता नहीं I
अनिल कुमार भारती