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kavitavarta

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अनुभूति और अभिव्यक्ति की यात्रा कथा…………

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कौए

27 सितम्बर 2015
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सुना हैविलुप्त हो रहें है।क्या सच ?पर क्या रमेसर की माँअब नहीं उड़ाएगीमुंडेर से कौए?पति के शहर सेलौटने की प्रत्याशा में।क्या अबझूठ बोलने परकाला कौआ नहीं काटेगाअबनहीं पढेंगे बच्चे'क' से कौआ।कहानी सुनाती नानीकैसे समझायेगीउन्हें किक्या होता है मतलबरानी से कौआ-हंकनीबन जाने का।जब दिखेंगे ही नहींकौएकौन लेग

पाँव के नीचे की जमीन

14 सितम्बर 2015
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गाँव में अब बच्चे नहीं खेलते गुल्ली डंडा, कबड्डी, छुप्पा-छुप्पीअब वे नहीं बनाते मिट्टी की गाडीनहीं पकड़ते तितलियाँगौरैयों और कबूतरों के घोंसलों में देख उनके बच्चों कोअब वे नहीं होते रोमांचित अब उन्हें रोज नहीं चमकानी पड़ती लकड़ी की तख्तीढिबरी की कालिख से मांज करऔर न ही उस पर बनानी पड़ती हैं दूधिया सतर

ईश्वर की संतानें

1 सितम्बर 2015
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वे बच्चे किसके बच्चे हैंनाम क्या है उनकाकौन हैं इनके माँ बाप कहाँ से आते हैं इतने सारेझुण्ड के झुण्ड, उन तमाम सरकारी योजनाओ के बावजूद जो अखबारों और टीवी के चमकदार विज्ञापनों में कर रही हैं हमारे जीवन का कायाकल्प, कालिख और चीथड़ो के ढकी बहती नाक और चमकती आँखों वालीजिजीविषा की ये अधनंगी मूर्तियाँजो बि

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