स्त्री होना, सहनशील होना
तब समझ आता है
जब संघर्ष करती है वह
अपने अंदर के समाज से,
अनादर भरे शब्दों से,
अपमान भरे वातावरण से,
अपनों द्वारा लगाई गई चोट से,
कभी ना भरने वाले
आत्मसम्मान पर लगाए गए घावों से,
कभी ना दिखाने वाले अश्रुओं से,
टूटकर भी दोबारा मुस्कुराने के साहस से!!!