सूबेदार अमरीक सिंह
मेरी यह कहानी एक ऐसे वीर सैनिक की है, जिसने आतंकवादियों द्वारा बंधक बनाकर रखे गए बच्चों को रिहा कराते हुए अपने प्राणों को न्यौछावर कर दिया था।
सरदार अमरीक सिंह का जन्म अमृतसर के एक छोटे से गांव आलमपुर में सिख परिवार में हुआ था। अमरीक सिंह के पिता सरदार दलजीत सिंह गांव के सरपंच थे, बड़ा संपन्न परिवार था उनका। घर में दूध की व्यवस्था के लिए पशु भी पाल रखे थे। अमरीक सिंह को पढ़ाई के साथ-साथ कुश्ती का भी शौक था।वह हर वर्ष बैसाखी के मेले में होने वाली कुश्ती प्रतियोगिता में भाग लिया करता था और हमेशा जीत कर आता था।
एक बार उसके गांव में सैनिकों की भर्ती करने मिलट्री की गाड़ी आई हुई थी, अमरीक सिंह भी अपने युवा साथियों के साथ भर्ती देखने चला गया।
मिलट्री के अधिकारियों ने अमरीक सिंह के शरीर सौष्ठव को देखकर उसे सेना की भर्ती के लिए चुन लिया।
अमरीक सिंह अपने माता-पिता से अनुमति लेकर मिलट्री की गाड़ी में बैठ कर चल दिया। प्रशिक्षण पूरा करने के बाद उसे लेह की चोटी पर स्थित सुरक्षा चौकी की रक्षा का भार सौंपते हुए कुछ सैनिकों के साथ भेज दिया।
एक दिन रात्रि में जब अमरीक सिंह खाना खाने के बाद अपने साथियों को अपने बचपन के दिनों के किस्से सुना रहा था कि अचानक उसने महसूस किया कि कुछ लोग चोटी पर चढ़ने की कोशिश कर रहे थे। उसने अपने साथियों से अपनी पोजीशन संभालते हुए हर मुश्किल से जूझने के लिए तैयार रहने को कहा। उसने अपनी दूरबीन से देखा कि ये दुश्मन के सैनिक थे जो चोटी पर चढ़ने की कोशिश कर रहे थे। इनकी संख्या पांच थी।
अमरीक सिंह ने अपने सैनिकों के साथ अपनी पोजीशन संभालते हुए उन पर अचानक आक्रमण कर दिया। अचानक हुए इस आक्रमण से दुश्मन के सैनिक संभल नहीं पाये और चोटी से गिर कर काल के गाल में समा गए।
अधिकारियों ने अमरीक सिंह की वीरता और साहस की प्रशंसा करते हुए उसे सूबेदार बना दिया गया साथ ही सीमा चौकी की सुरक्षा को और भी बढ़ा दिया।
यह उन दिनों की बात है जब अमरीक सिंह कुछ दिनों की छुट्टियां बिताने अपने गांव आया हुआ था। एक दिन वह अपने पिता को अपनी वीरता के किस्से सुना रहा था कि उसने देखा कि गांव के लोग बदहवास हालत में स्कूल की तरफ दौड़े चले जा रहे हैं। अमरीक सिंह ने एक व्यक्ति को रोक कर पूछा तो उसने बताया कि कुछ आतंकवादियों ने स्कूल की बिल्डिंग को कवर कर लिया है और अध्यापकों वह बच्चों को बंधक बनाकर एक कमरे में बंद कर दिया है।उनकी मांग है कि जिला कारागार में बन्द उनके साथियों को रिहा करने के बाद ही बंधक बनाकर रखे गए बच्चों को रिहा करेंगे।
अमरीक सिंह ने आनन-फानन में अपने साथियों को इस बात की खबर करते हुए कहा कि वे तुरंत अपने हथियारों सहित उसके पास पहुंचें। ये वही युवा साथी थे, जिनको अमरीक सिंह ने छुट्टियों में आकर हथियार चलाने का प्रशिक्षण दिया था।
यह सूचना मिलते ही उसके साथी हथियारों से लैस अमरीक सिंह के पास आ पहुंचे और तुरंत स्कूल की बिल्डिंग की ओर दौड़ पड़े। अमरीक सिंह कुछ ही दूर पहुंचा था कि उसने देखा कि लगभग दस आतंकवादी छत पर खड़े होकर चोकन्ने हो, पहरा दे रहे थे और शेष उस कमरे पर पहरा दे रहे थे जहां बच्चों को बंधक बना कर रखा था।अपने साथियों के साथ अमरीक सिंह ने अपनी पोजीशन संभाल ली और उसके साथियों में से एक ने छत पर खड़े हुए आतंकवादी को निशाना बनाते हुए गोली दाग दी। गोली लगते ही उस आतंकवादी के प्राण पखेरु उड़ गए। अपने साथी को मरते देख अन्य आतंकवादी चौकन्ना हो गए और अपनी पोजीशन संभालते हुए उन में से एक ने निशाना साधते हुए उसी दिशा में गोली दाग दी , गोली अमरीक सिंह को छूकर निकल गई।
गोली चलने की आवाज सुनकर और आतंकवादी को मरते देख कर गांव वाले जोश में आ गए। फिर पत्थरों से लैस होकर घेराबंदी करते हुए आगे बढ़ने लगे। आतंकवादी अपने को चारों ओर से घिरे हुए देख कर आत्मरक्षा में गोली चलाने लगे। उनकी पिस्टल से निकली गोली अमरीक सिंह के जा लगी। अमरीक सिंह बुरी तरह से घायल हो गया और उसके शरीर से लहू बह निकला।
अमरीक सिंह के साथी उसे आतंकवादियों की दृष्टि से बचा कर दूर सुरक्षित स्थान पर ले आए और उसे बचाने का प्रयास करने लगे किन्तु शरीर से अत्यधिक लहू बह जाने से उसे मृत्यु के क्रूर हाथों से बचा नहीं पाए ।
उसका पार्थिव शरीर गांव लाया गया।उसे देखकर उसकी मां एकदम फफक कर रो पड़ी और बेहोश हो गई। गांव की कुछ औरतों ने उसे संभाला। अपने बेटे का पार्थिव शरीर देखकर पिता दलजीत सिंह बोले” मेरे और भी बेटे होते तो मैं उनको भी गांव के इन नोनिहाल बच्चों की खातिर भेंट चढ़ा देता।
इधर जैसे ही अमरीक सिंह की मृत्यु का समाचार उसके अधिकारियो को मिला तो उन्होंने कुछ सैनिकों को उसके गांव के लिए रवाना कर दिया।
साथी सैनिकों ने अपने वीर सैनिक साथी के पार्थिव शरीर पर पुष्प चक्र अर्पित किए। इसके बाद उसकी शव यात्रा चिता स्थल ले जायी गई, जिसमें गांव का हर शख्स शामिल था। शव यात्रा के आगे सैनिक मातमी धुन बजाते हुए चल रहे थे। चिता स्थल पहुंचने पर उसके सम्मान में सैनिकों ने कई चक्र गोलियां चलाई।
इसके बाद अमरीक सिंह का पार्थिव शरीर चिता पर रख दिया और जब उसके पिता मुखाग्नि देने लगे तो वहां मौजूद लोगों की आंखों से जलधारा बहने लगी।
कुछ दिनों बाद गांव के लोगों ने अमरीक सिंह की याद को चिरस्मरणीय रखने के लिए उसकी एक आदमकद प्रतिमा को गांव की स्कूल के प्रांगण में एक समारोह आयोजित कर स्थापित कर दिया और उसका अनावरण उसके पिता से करवाया गया।