"आँखे भी खोलनी पडती है रोशनी के लिए,
महज़ सूरज निकलने से अंधेरा नहीं जाता."....!!!
माना की बेटियो की कमी है समाज मे,,
पर केवल इसका रोना रोने से अनुपात बढ़ नही जाता !!!
बीमारी के कारणों को पहचानना होगा ,,
दहेज़ का विरोध किये बिना समाधान हो नही सकता !!!
शहीदो की शहादत पसंद है सबको ,,
अपने घर से शहीद कोई देखना नही चाहता !!!
बहु तो जरूरी है यहाँ , हर किसी को ,,
बेटियो का जन्म वो होते देखना नही चाहता !!!
समाज सुधार की बातें करते है यहाँ हजारो,,
जमीनी धरातल पर कोई चलना नही चाहता !!!
सूरज बनने की ख्वाहिश है यहाँ सबको ,,
सूरज की तरह कोई तपना नही चाहता !!!
लोग डूबे है अपने स्वार्थ के कीचड़ में ,,
कोई परमार्थ में अपना समय खराब करना नही चाहता !!!
मीठे फल खाना चाहते है हर कोई यहाँ ,,
फल के पेड़ को पानी कोई देना नही चाहता !!!
रे "मेघ " तू पागल है तुझे नही पता,
मुँह पर ये बात कोई बताना नही चाहता !!!
माना की बिन बेटियो के ये संसार नही चलता ,
लोग आज का देखते है , कल कोई जानना नही चाहता !!!