मासूमियत का क़त्ल
कभी सूरज की रौशनी बन करमेरे आँगन में बिखर जाती, मेरे मन के हर कोने को जगमगाती कभी चाँदनी बन कर मेरे आँगन में पसर जाती ,मेरे अंदर तक शीतलता भर जाती। कभी खुशबु बन कर ,मेरे आँगन से गुजर जाती। मेरे आस पास क्या वह तो ,अंदर तक मुझे महका ती ,कई दिनों तक जब।,देखा नहीं अ