मेरे घर के आसपास चारों तरफ सिर्फ पेड़ पौधे और मंदिर है जिसकी वजह से हमारी सुबह पक्षियों की चहचहाहट के साथ और मंदिर की घंटियों की आवाज सुनकर होती हैं। मुझे और मम्मी को सुबह-सुबह चाय पीना हमारा सबसे पहला काम लगता है और जगते ही मम्मी और कभी-कभी मैं भी चाय बनाने के लिए रसोई में चली जाती हूं रसोई में जाते ही मैं सबसे पहले अपने रसोई की खिड़कियां खोलती हूं जिसे खोलते ही बाहर पेड़ पर बैठी चिड़िया और दूसरे पक्षी आवाज करने लगते हैं उन्हें अगर ध्यान से सुनो तो ऐसा लगता है कि जैसे वह गुनगुनाते हुए हमारी सुबह को और हसीन बनाने की कोशिश कर रहे हैं। जब तक चाय बनती है तब तक मैं वही खड़ी होकर उन पक्षियों को देखती रहती हूं और उन्हें ध्यान लगाकर उनकी हर एक हरकत को निहारती रहती हूं थोड़ी देर बाद सूरज की पहली रोशनी जैसे ही मेरे घर की रसोई और आंगन में पड़ती है तो ऐसा लगता है कि जैसे पूरा घर सोने की तरह चमक उठा है। और फिर मानो जैसे सूरज की यह नई रोशनी जिंदगी में एक नया जोश और उमंग भर गई हो चाय पीकर उत्तम तरोताजा महसूस होता है और फिर हम सब लोग अपनी दिनचर्या में लग जाते हैं जिसकी शुरुआत मेरा और पापा का पक्षियों को दाना डालना मम्मी का चिड़िया के लिए गरम रोटियां बना कर उन्हें चुरा कर कर चिड़िया के लिए अपने हाथों से डालना और दीदी का गेहूं के दाने कबूतरों के लिए डालना। प्रकृति हम सबकी जिंदगी में एक नई और जोशीली उमंग भर देती हैं जिसकी शुरुआत मेरे रसोई की खिड़की से होती है।
मनीषा अग्रवाल।