" ऐ बबलू, कट्टे में से जूता चप्पल छाँट कर अलग कर दे,और देख! जूता अलग छांटना और चप्पल अलग...।" बिरमा के बताए काम को करने में बबलू तुरंत जुट गया।
कट्टे से निकले टूटे फूटे जूते चप्पलों को अलग करते बबलू की नजर अपने पैर के साइज के जूतों पर पड़ी।
उसकी आँखों में चमक आ गई और वह उन्हें पहनकर खड़ा हो गया।
" चाचा ! इन्हें मैं रख लूँ?" बबलू ने चहकते हुए कहा।
" टूटा पड़ा है सारा! क्या करेगा इसका? ठीक करने में गोंद, चमड़ा बर्बाद ही होगा और चलेगा है नहीं।" बिरमा ने एक नजर जूते पर डाली और कहा।
"मैं ठीक कर लूंगा चाचा...ज्यादा खर्च नहीं करूंगा...।" बबलू ने मनाते हुए बोला।
"ठीक है रख ले और जल्दी काम खत्म कर।"
बिरमा ने कहा और अपने काम में लग गया।
बबलू की आँखों आई में जूतों की चमक अब उन जूतों पर उतर आई। सूई और धागे का साथ पाकर जूते की उधड़ी चमड़ी अपनी जगह पर आ गई।
नन्हें हाथों में जैसे हुनर उतर आया। पुराने फटे चमड़े के टुकड़े नयी जगह आकर खिल उठे।
अंधियारा आते आते बबलू के हाथों में जूते आ गए थे। चमकदार, सही जूते। माथे पर खारे पसीने की बूंदें थिरकने लगी।
वह खुशी से उछलता हुआ बिरमा के सामने जाकर खड़ा हो गया।
इससे पहले की वह बिरमा को अपना जूता दिखाता किसी ने वह जूते खींच लिए।
"वाह! बापू यह मेरे लिए हैं?" बबलू का हमउम्र चचेरा भाई ,बिरमा के सामने जूते लहराने लगा।
" तेरे तो नहीं, लेकिन तू ही रख ले।बबलू और बना लेगा।" मुँह में बीड़ी ठोककर वह बोला।
बबलू के आँखों में आई चमक धुंधली हो गई लेकिन होंठों पर मुस्कान बनी रही।
दिव्या शर्मा।
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