हर बार
दिल के दरवाजे पर
जाने किस झरोखे से
कुछ यूँ झांकती है
के कुछ पल के लिए ही सही
चेहरे पे ख़ुशी की झलक
साफ दिखाई देती है,
मन खुश होता है,
दिल खुश होता है,
फिर जाने कैसे
चिंताओं की परछाई
उस किरण के सामने
आ जाती है
सब दूर अँधेरा छा जाता है
दिल डूब जाता है।
धीरे धीरे लड़खड़ाती सी
फिर गुम हो जाती है
वो किरण..
जो दिल के किसी कोने में
उम्मीद का दिया
जला जाती है।
बस यही सिलसिला
हर रोज
मेरे साथ घटता है
जैसे
ज़िन्दगी के समय की रेत
क्षण क्षण
शनैः शनैः
घटती जाती है।