हे जगज्जननी मातु, सुन ले हमारी अर्चन |
हे वीणावादिनी माँ , सर्वस्व तुझपे है अर्पण ||
अज्ञानता मिटा दे , तू कष्ट सारे हर ले |
कर दे प्रकाशित जीवन,तम को तू सारे हर ले ||
संपूर्ण सृष्टि तुझको, आह्वान कर रहा हैै |
देर ना कर अब तू , नव चेतना तू भर दे ||
हे विद्यादायिनी माँ, सुन ले मेरी गुजारिश |
ये विश्व रो रहा है, खुशियों की कर दे बारिश ||
संपूर्ण सृष्टि तेरी , कहीं कैद हो गई है |
सुक्ष्म वायरस से जीवन तबाह हो गई है ||
कैसी ये विपदा मातु, सृष्टि में छा गई है |
अपने-ही-अपनो से , अब हो रहे पराये ||
अज्ञानता के कारण , हम नष्ट हो रहे हैं |
हौसला भी हमारे , अब पस्त हो रहे हैं ||
प्रतिपल, प्रतिक्षण तुझसे, मैं कर रही हूँ अर्चन |
तू ही मेरी है माता , तुझसे ही जीवन रौशन ||
तू ही है एक सहारा , तू ही है जग प्रतिपालक,
रह-रह पुकारती हूँ , तुझे आर्त्त- स्वर में मातु ||
जीवन की आस भी अब , छुटने लगी है |
गलियाँ व फिजाएँ भी अब , रुठने लगी है |
हृदयविदारक घटना यहाँ आम हो गई है,
सम्पूर्ण सृष्टि तेरी, अब श्मशान बन गई है ||
हे सृष्टिप्रतिपालक मातु, मेरा हृदय तुझे पुकारे |
देर अब तू कर ना , परेशानियाँ तू हर ले||