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वंदना

17 मई 2020

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हे जगज्जननी मातु, सुन ले हमारी अर्चन |

हे वीणावादिनी माँ , सर्वस्व तुझपे है अर्पण ||


अज्ञानता मिटा दे , तू कष्ट सारे हर ले |

कर दे प्रकाशित जीवन,तम को तू सारे हर ले ||


संपूर्ण सृष्टि तुझको, आह्वान कर रहा हैै |

देर ना कर अब तू , नव चेतना तू भर दे ||


हे विद्यादायिनी माँ, सुन ले मेरी गुजारिश |

ये विश्व रो रहा है, खुशियों की कर दे बारिश ||


संपूर्ण सृष्टि तेरी , कहीं कैद हो गई है |

सुक्ष्म वायरस से जीवन तबाह हो गई है ||


कैसी ये विपदा मातु, सृष्टि में छा गई है |

अपने-ही-अपनो से , अब हो रहे पराये ||


अज्ञानता के कारण , हम नष्ट हो रहे हैं |

हौसला भी हमारे , अब पस्त हो रहे हैं ||


प्रतिपल, प्रतिक्षण तुझसे, मैं कर रही हूँ अर्चन |

तू ही मेरी है माता , तुझसे ही जीवन रौशन ||


तू ही है एक सहारा , तू ही है जग प्रतिपालक,

रह-रह पुकारती हूँ , तुझे आर्त्त- स्वर में मातु ||


जीवन की आस भी अब , छुटने लगी है |

गलियाँ व फिजाएँ भी अब , रुठने लगी है |


हृदयविदारक घटना यहाँ आम हो गई है,

सम्पूर्ण सृष्टि तेरी, अब श्मशान बन गई है ||


हे सृष्टिप्रतिपालक मातु, मेरा हृदय तुझे पुकारे |

देर अब तू कर ना , परेशानियाँ तू हर ले||

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श्रम साधक को विश्राम नहीं

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श्रम साधक को विश्राम नहींकडी़ धूप में मेहनत करते , सर्दी में भी नहीं वे थकते |कभी बनातें सड़कें-गलियाँ, कभी तोड़ते कड़ी चट्टानकरते कभी आराम नहीं , श्रम साधक को विश्राम नहीं |मेहनत हीं है उनकी रीत ,लेते नहीं कभी वे भीख |मेहनत से ही खाते हैं ,चौराहे पर सो जाते हैं |कर्म में रहते सदा वे लीन, आजीवन रहत

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हे जगज्जननी मातु, सुन ले हमारी अर्चन |हे वीणावादिनी माँ , सर्वस्व तुझपे है अर्पण ||अज्ञानता मिटा दे , तू कष्ट सारे हर ले |कर दे प्रकाशित जीवन,तम को तू सारे हर ले ||संपूर्ण सृष्टि तुझको, आह्वान कर रहा हैै |देर ना कर अब तू , नव चेतना तू भ

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हे जगज्जननी मातु, सुन ले हमारी अर्चन |हे वीणावादिनी माँ , सर्वस्व तुझपे है अर्पण ||अज्ञानता मिटा दे , तू कष्ट सारे हर ले |कर दे प्रकाशित जीवन,तम को तू सारे हर ले ||संपूर्ण सृष्टि तुझको, आह्वान कर रहा हैै |देर ना कर अब तू , नव चेतना तू भर दे ||हे विद्यादायिनी माँ, सुन ले मेरी गुजारिश |ये विश्व रो रहा

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