केरल में गर्भवती हथिनी की मृत्यु से,
आज मानवता कराह रही है |
मनुष्य होकर दानवों-सी हरकते,
मनुष्यता किस ओर जा रही ?
हे मानव ! ऐसी क्या विपदा आन पड़ी,
जो तुम इतने हृदयहीन हुए,
दो -दो निरीह प्राणियों की हत्या कर
जरा भी ना गमग़ीन हुए |
एक बेजुबान पर ,
तुमने कैसी करामात की ?
दोनो में से जानवर कौन थे,
ये सोचने की बात है |
अनानास में विस्फोटक मिला ,
खिला दिया उस बेजुबान को |
आग लगी होगी मुख में,
दाँत जबड़े भी तो टूटे होंगे |
भरोसा करके खा लिया ,
हाय ! कैसी विश्वास घात हुई ,
तेरे कुकृत्यों के कारण ,
आज मानवता फिर शर्मसार हुई |
सोचो क्या बिती होगी उस,
शांत-शुचि गजगामिनी पर ,
बच्चे की पीर भाँप वह, ६
ममत्व से छटपटाई होगी |
पीर पराई होती क्या ,
तुम भी जान जाओगे ,
तेरे कर्मों का हिसाब,
तेरे अपने जब चुकाएँगे |
हे हृदयहीन मानव !
क्या स्वार्थ हीं है तेरा परम उद्देश्य,
इसी के वशीभुत हो,
तू प्रकृति से करता खिलवाड़ |
देख निरीह की दुर्दशा,
आज मेरा हृदय भी है रो उठा,
दो- दो प्राणियों की हत्या करते
क्या तुम्हें जरा भी दया न आई थी ?
करो रक्षा प्राकृतिक चिजों की,
पग -पग पर हम सुनते आते ,
वास्तविक जीवन में इन पर,
क्यों अमल नहीं फरमाई जाती |
प्रकृति से जो करोगे खिलवाड़,
तो तुम भी तो बच ना पाओगे ,
काँटे अगर बिछाओगे तो ,
फूलों की सेज कहाँ से पाओगे ?
केरल में गर्भवती हथिनी की हत्या
चीख चीख कर दे रही है गवाही,
स्वार्थलोलुपता, मदांधता
यही तेरा दस्तुर है |