आज भारत विकास की राह में तेजी से आगे बढ़ते हुए भी किसी मोड़ पर पिछड़ा हुआ है। हम आर्थिक रूप से भले ही सशक्त हो गए हो लेकिन सामाजिक रूप से आज भी हम सशक्तिकरण के उस द्वार पर नही पहुंच पाए हैं ,जहां हमें बहुत पहले ही पहुंच जाना था।समाज के सशक्तिकरण से हमारा तात्पर्य समाज के सभी वर्गों यथा महिला - पुरुष, ऊंच नीच , अमीर गरीब आदि में मध्य दशकों से व्याप्त असामनता की खाई को पाटना है। आज भी देश के विकसित से विकसित और पिछड़े से पिछड़े क्षेत्र में महिलाओं के खिलाफ अपराध अपनी चरम सीमा पर है। यौन दुर्व्यवहार, घरेलू हिंसा, उत्पीड़न, एसिड अटैक, दहेज प्रथा,लिंग आधारित भेदभाव आदि न जाने ऐसी कितनी ही समस्याएं हैं जिनका सामना महिलाएं अपने दैनिक जीवन में दैनिक क्रिया की भांति करती है।
केंद्र और राज्य सरकारों के साथ साथ कई ऐसे संगठन भी वर्तमान में अस्तित्व में आए हैं जो इस असमानता और आतंकवाद से भी बड़ी समस्या का समाधान करने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं,पर नतीजा आज भी शून्य से आगे नहीं बढ़ पा रहा है। इसका मुख्य कारण सरकार की ओर से उठाए गए कदम नहीं बल्कि समाज की जन भागीदारी का न होना है। इससे भी बड़ा कारण समाज की व्यक्तिगत सोच अधिक है। कहा जाता है कि कोई भी समस्या एक पेड़ की भांति होती हैं।जिस तरह एक पेड़ की वृद्धि को तब तक नही रोका जा सकता जब तक कि उसकी जड़ पर प्रहार न किया जाए। उसी प्रकार महिलाओं के खिलाफ हो रहे अपराधों की इस शाखा को तोड़ने के लिए इनकी जड़ पर प्रहार होना बहुत जरूरी है।
इन सभी बातों पर ध्यान देने से पहले हमे यह समझना जरूरी है कि इसकी मुख्य जड़ क्या है??आसान भाषा में कहें तो इसकी जड़ हमारी सोच, मानसिकता,और कहीं न कहीं बचपन से दी जा रही शिक्षा है।आज हम जितना आगे बढ़ रहे हैं आधुनिकता को अपना रहे हैं उतना ही कहीं न कहीं इस समस्या को बढ़ावा दे रहे हैं। कभी चुटकुलों के रुप में, कभी हंसी मजाक के रुप में तो कभी किसी वीडियो के रुप में।
यदि हमें इस समस्या का समाधान करना है तो सर्वप्रथम अपनी सोच, अपनी कार्य प्रणाली ,अपनी सामाजिक स्थिति को बदलना होगा।जिस दिन हमने अपने इस व्यवहार को बदल दिया उस दिन यह समस्या एक आम स्थिति होकर ऐसे गायब होगी इस देश से जैसे यह समस्या किसी और काल की किसी और युग की हो।