shabd-logo

common.aboutWriter

no-certificate
common.noAwardFound

common.books_of

kavitayen

kavitayen

बचपन से अब तक पढ़े पसंदीदा कविताओं को एक जगह संग्रह करने की एक कोशिश

निःशुल्क

kavitayen

kavitayen

बचपन से अब तक पढ़े पसंदीदा कविताओं को एक जगह संग्रह करने की एक कोशिश

निःशुल्क

common.kelekh

हम पंछी उन्‍मुक्‍त गगन के (Hum Panchhi Unmukt Gagan Ke) - शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ (Shivmangal Singh 'सुमन')

10 अक्टूबर 2015
2
1

हम पंछी उन्‍मुक्‍त गगन केपिंजरबद्ध न गा पाऍंगे,कनक-तीलियों से टकराकरपुलकित पंख टूट जाऍंगे।हम बहता जल पीनेवालेमर जाऍंगे भूखे-प्‍यासे,कहीं भली है कटुक निबोरीकनक-कटोरी की मैदा से,स्‍वर्ण-श्रृंखला के बंधन मेंअपनी गति, उड़ान सब भूले,बस सपनों में देख रहे हैंतरू की फुनगी पर के झूले।ऐसे थे अरमान कि उड़तेनील

हिंदी हम सबकी परिभाषा

20 सितम्बर 2015
4
1

कोटि-कोटि कंठों की भाषा,जनगण की मुखरित अभिलाषा,हिंदी है पहचान हमारी,हिंदी हम सबकी परिभाषा ।आज़ादी के दीप्त भाल की,बहुभाषी वसुधा विशाल की,सहृदयता के एक सूत्र में,यह परिभाषा देश-काल की ।निज भाषा जो स्वाभिमान को,आम आदमी की जुबान को, मानव गरिमा के विहान को, अर्थ दे रही संविधान को ।हिंदी आज चाहती हमसे-हम

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए