कोटि-कोटि कंठों की भाषा,
जनगण की मुखरित अभिलाषा,
हिंदी है पहचान हमारी,
हिंदी हम सबकी परिभाषा ।
आज़ादी के दीप्त भाल की,
बहुभाषी वसुधा विशाल की,
सहृदयता के एक सूत्र में,
यह परिभाषा देश-काल की ।
निज भाषा जो स्वाभिमान को,
आम आदमी की जुबान को,
मानव गरिमा के विहान को,
अर्थ दे रही संविधान को ।
हिंदी आज चाहती हमसे-
हम सब निश्छल अंतस्तल से,
सहज विनम्र अथक यत्नों से,
मांगे न्याय आज से, कल से ।
कोटि-कोटि कंठों की भाषा,
जनगण की मुखरित अभिलाषा,
हिंदी है पहचान हमारी,
हिंदी हम सबकी परिभाषा ।
-डा० लक्ष्मीमल्ल सिंघवी