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हम पंछी उन्‍मुक्‍त गगन के (Hum Panchhi Unmukt Gagan Ke) - शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ (Shivmangal Singh 'सुमन')

10 अक्टूबर 2015

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हम पंछी उन्‍मुक्‍त गगन के

पिंजरबद्ध न गा पाऍंगे,

कनक-तीलियों से टकराकर

पुलकित पंख टूट जाऍंगे।


हम बहता जल पीनेवाले

मर जाऍंगे भूखे-प्‍यासे,

कहीं भली है कटुक निबोरी

कनक-कटोरी की मैदा से,


स्‍वर्ण-श्रृंखला के बंधन में

अपनी गति, उड़ान सब भूले,

बस सपनों में देख रहे हैं

तरू की फुनगी पर के झूले।


ऐसे थे अरमान कि उड़ते

नील गगन की सीमा पाने,

लाल किरण-सी चोंचखोल

चुगते तारक-अनार के दाने।


होती सीमाहीन क्षितिज से

इन पंखों की होड़ा-होड़ी,

या तो क्षितिज मिलन बन जाता

या तनती सॉंसों की डोरी।


नीड़ न दो, चाहे टहनी का

आश्रय छिन्‍न-भिन्‍न कर डालो,

लेकिन पंख दिए हैं, तो

आकुल उड़ान में विघ्‍न न डालों।

ओम प्रकाश शर्मा

ओम प्रकाश शर्मा

कवि शिवमंगल सिंह 'सुमन' जी की यह सुन्दर रचना साझा करने हेतु बहुत-बहुत धन्यवाद, विक्की आनंद जी !

12 अक्टूबर 2015

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रचनाएँ
kavitayen
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बचपन से अब तक पढ़े पसंदीदा कविताओं को एक जगह संग्रह करने की एक कोशिश
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हिंदी हम सबकी परिभाषा

20 सितम्बर 2015
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कोटि-कोटि कंठों की भाषा,जनगण की मुखरित अभिलाषा,हिंदी है पहचान हमारी,हिंदी हम सबकी परिभाषा ।आज़ादी के दीप्त भाल की,बहुभाषी वसुधा विशाल की,सहृदयता के एक सूत्र में,यह परिभाषा देश-काल की ।निज भाषा जो स्वाभिमान को,आम आदमी की जुबान को, मानव गरिमा के विहान को, अर्थ दे रही संविधान को ।हिंदी आज चाहती हमसे-हम

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हम पंछी उन्‍मुक्‍त गगन के (Hum Panchhi Unmukt Gagan Ke) - शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ (Shivmangal Singh 'सुमन')

10 अक्टूबर 2015
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हम पंछी उन्‍मुक्‍त गगन केपिंजरबद्ध न गा पाऍंगे,कनक-तीलियों से टकराकरपुलकित पंख टूट जाऍंगे।हम बहता जल पीनेवालेमर जाऍंगे भूखे-प्‍यासे,कहीं भली है कटुक निबोरीकनक-कटोरी की मैदा से,स्‍वर्ण-श्रृंखला के बंधन मेंअपनी गति, उड़ान सब भूले,बस सपनों में देख रहे हैंतरू की फुनगी पर के झूले।ऐसे थे अरमान कि उड़तेनील

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