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विमल चंद्र पांडेय के बारे में

अस्सी के दशक में जन्म लेने और नब्बे के दशक में किशोरावस्था पार कर युवावस्था छूने वाली उस पीढ़ी से ताल्लुक़ जिसने सचिन को खेलते देखा, घर से दूर जाने पर पीसीओ से रात आठ बजे के बाद फ़ोन किए और पन्नों पर प्रेम-पत्र लिखे। सिनेमा-प्रेमी पिता के बेटे को टीवी-सिनेमा से दूर रखने की ज़िद ने बेटे को कहानियों और फ़िल्मों का दीवाना छोटी उम्र से बना दिया। क़िस्से बनाने और उनमें सच-झूठ की मिलावट करने की आदत बचपन से लगी जिसके पहले शिकार भाई-बहन और दोस्त हुए। ग्यारहवीं क्लास से भागकर सिनेमा देखने की जो आदत लगी वो अब आराम से देखने में तब्दील हो गई है। कहानियाँ लिखते-लिखते तीन किताबें भर गई हैं और कुछ इंतज़ार कर रही हैं। डर (भारतीय ज्ञानपीठ), मस्तूलों के इर्दगिर्द (आधार प्रकाशन) और उत्तर प्रदेश की खिड़की (साहित्य भंडार) की कहानियाँ और 'भले दिनों की बात थी' (आधार प्रकाशन) नाम के उपन्यास के बाद से गति और विधा में थोड़ा बदलाव आया है। हिंदी फिल्म 'द होली फिश' का लेखन, निर्देशन और निर्माण किया है जो राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय समारोहों तक का सफ़र तय कर चुकी है। ज़िन्दगी चल रही है और हर रोज़ हैरानियाँ दिखा रही है। हैरान होना पसंद है।

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विमल चंद्र पांडेय की पुस्तकें

लहरतारा

लहरतारा

बनारस के एक छोटे से मोहल्ले में बड़ा होता एक लड़का घर के माहौल से ऊब कर संतों की संगति में बैठने लगता है और दुनिया देखने का उसका नज़रिया बदलने लगता है। वो बड़ा होकर लेखक बनना चाहता है और इस सपने को जीते हुए वह बचपन की दोस्तियों और जवानी के प्यार से रूबरू

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249/-

लहरतारा

लहरतारा

बनारस के एक छोटे से मोहल्ले में बड़ा होता एक लड़का घर के माहौल से ऊब कर संतों की संगति में बैठने लगता है और दुनिया देखने का उसका नज़रिया बदलने लगता है। वो बड़ा होकर लेखक बनना चाहता है और इस सपने को जीते हुए वह बचपन की दोस्तियों और जवानी के प्यार से रूबरू

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ई इलाहाब्बाद है भइया

ई इलाहाब्बाद है भइया

पूरब का ऑक्सफ़ोर्ड' और 'साहित्य की राजधानी' जैसे और भी कई विशेषणों से मशहूर शहर इलाहाबाद को एक पत्रकार और उभरते कहानीकार ने जैसा देखा, जिया और भुगता, हूबहू वैसा उतार दिया है। इस अलहदा शहर की मस्ती, इसकी बेबाकी और इसमें मिली मोहब्बत का कोलाज है यह किता

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150/-

ई इलाहाब्बाद है भइया

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पूरब का ऑक्सफ़ोर्ड' और 'साहित्य की राजधानी' जैसे और भी कई विशेषणों से मशहूर शहर इलाहाबाद को एक पत्रकार और उभरते कहानीकार ने जैसा देखा, जिया और भुगता, हूबहू वैसा उतार दिया है। इस अलहदा शहर की मस्ती, इसकी बेबाकी और इसमें मिली मोहब्बत का कोलाज है यह किता

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मारण मंत्र

मारण मंत्र

समय के चालाक और कुटिल हेर-फेर के बाद बनारस के घोर-घनघोर जीवन को एक ऐसे किस्सागो की जरूरत थी, जो वक्त के साथ उतनी ही बेहयाई और बेरहमी से पेश आने की कुव्वत रखता हो। विमल चन्द्र पाण्डेय इस जरूरत को पूरा करते हैं। उनकी कहानी ‘जिन्दादिल’ का सिर्फ एक वाक्य

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मारण मंत्र

मारण मंत्र

समय के चालाक और कुटिल हेर-फेर के बाद बनारस के घोर-घनघोर जीवन को एक ऐसे किस्सागो की जरूरत थी, जो वक्त के साथ उतनी ही बेहयाई और बेरहमी से पेश आने की कुव्वत रखता हो। विमल चन्द्र पाण्डेय इस जरूरत को पूरा करते हैं। उनकी कहानी ‘जिन्दादिल’ का सिर्फ एक वाक्य

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मैं और मेरी कहानियाँ

मैं और मेरी कहानियाँ

हिंदी में प्रसिद्ध और लोकप्रिय कथाकारों की कहानियों के विभिन्न संचयन होते रहे हैं। 'मैं और मेरी कहानियाँ' इस तरह के संचयनों में विशिष्ट प्रयोग है क्योंकि यहाँ हिंदी के शीर्ष कथाकार असग़र वजाहत के परामर्श से युवा पीढ़ी के प्रमुख कथाकार ने अपनी कहानियों

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मैं और मेरी कहानियाँ

हिंदी में प्रसिद्ध और लोकप्रिय कथाकारों की कहानियों के विभिन्न संचयन होते रहे हैं। 'मैं और मेरी कहानियाँ' इस तरह के संचयनों में विशिष्ट प्रयोग है क्योंकि यहाँ हिंदी के शीर्ष कथाकार असग़र वजाहत के परामर्श से युवा पीढ़ी के प्रमुख कथाकार ने अपनी कहानियों

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विमल चंद्र पांडेय के लेख

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