जय परशुराम जी. वैदिक कालखंड के आर्यावर्त में हमारे ऋषि मुनि क्षत्रियों को राज सत्ता सौंप उन्हें राष्ट्र और जन दोनों के हित में कार्य करने का निर्देश दे कर निश्रेयस भाव से वन में सामान्य साधनों में जीवन यापन करते थे, साथ ही निरंतर समाज को देने के लिए ज्ञान विज्ञान का अनुसंधान कर नित नई खोजों व तप में लीन रहते थे. इन्ही के मध्य जमदग्नि ऋषिवर के घर राम का जन्म हुआ, माता रेणुका के स्नेह से सिंचित राम तप हेतु हिमालय चले गये, इधर सत्ता मद में अंधे राजा ने आम जनता को पीड़ित करना शुरू कर दिया, ज्ञान, विज्ञान, गाय, गंगा, गायत्री सभी अपने आप को असुरक्षित अनुभव करने लगे, मदांध राजसत्ता ऋषि गणों के अपमान और शील हरन पर उतर आई, जमदग्नि ने प्रतिकार किया परन्तु आतंकवाद ने उनके प्राणों की बली ले ली. माँ रेणुका और आम जन की करूंण पुकार, गौमाता की चीत्कार से विचलित राम तप छोड़ आश्रम आये, परिस्थतियों ने उन्हें सशस्त्रक्रांति पर मजबूर किया परिणाम स्वरूप " परशुराम " का प्रादुर्भाव हुआ. आतंक, स्त्री प्रताड़ना और गो हत्या के विरुद्ध प्रथम युद्ध इस आर्य भूमि पर परशुराम जी ने किया, सत्ता का कोई मोह था नही सो राज किया नही, राज सत्ता मद में अंधे शासकों को उनके कर्मों का दंड देने वाले परशुराम जी आज दिन तक चलने वाले अराजकता और कुसंस्कृति के विरुद्ध युद्ध के अगुआओं के लिए आदर्श है, वो किसी एक जाती के पूज्य नही वरन समस्त मानव जाती के आराध्य है. चाणक्य से लेकर मंगल पण्डे ,भगतसिंह, सुभाषजी, जयप्रकाश नारायण, नरेंद्र मोदी तक के वो आदर्श है इसीलिए उन्हें चिरंजीवी कहा गया है. आज के युग में भगवन परशुराम जी सभी देशभक्तों, गोउ भक्तों के आराध्य है. श्री राम की प्रेरणा के स्त्रोत्र भी वो ही थे. आज उनके अवतरण दिवस पर साष्टांग नमन. @ नरेन्द्र बोहरा