shabd-logo

निजी लाभ हानि में धर्म को क्यों धकेले...

1 जनवरी 2016

157 बार देखा गया 157

राजस्थान के वरिष्ठ आईएस अफसर श्री उमराव सालोदिया ने मुख्य सचिव नहीं बनाने से नाराज होकर 

इस्लाम कबूल कर लिया, उनका कहना था की हिन्दू धर्म में भेदभाव होता है और वे दलित है अत: 

उन्हें इस पद से वंचित रखा गया है. ये बहुत ही अटपटी बात लगती है, अगर उन्हें मुख्य सचिव नही 

बनाया तो ये राजनितिक और प्रशासनिक निर्णय है इससे धर्म का क्या लेना देना ? भारत की सर्वोच्च 

सेवा के अधिकारी जिन्होंने अपने सेवाकाल के दौरान अनेको महत्वपूर्ण पदों को सुशोभित किया, अपने 

जीवन और सेवा के उतराद्ध काल में अखिल विश्व को शाश्वत जीवन पद्दति देने वाले हिन्दू दर्शन पर 

भेदभाव का आरोप लगाकर मुसलमान बनने तथा इस्लाम में किसी प्रकार का भेदभाव नही है ये तर्क देने 

को नासमझी तथा स्वार्थपरता ही कहा जायेगा की जब मलाई खाने को नही मिली तो गाय को ही गलत 

ठहरा दिया या उ कहें की तबेले की बला बंदर के सर. सालोदिया जी स्वयम को दलित बता कर एक 

साहनुभूति की लहर उठाना चाहते है लेकिन शायद उन्होंने भारत रत्न डॉ. भीमराव अम्बेडकर को ढंग से 

नही पढ़ा जिनकी वजह से ही वो आज इस मुकाम तक पहुंचे है. बाबा साहेब ने अपने जीवन काल में

अनगिनत बार अपमान और भेद्भाव सहे वो भी उस समय जब उनकी सुरक्षा को या प्रगति की राह दिखाने 

वाले आज के कानून नही थे. बाबासाहेब ने जो कुछ भी पाया वो अपनी योग्यता और संघर्षों के प्रतिफल 

के रूप में पाया. उन्होंने कभी भी हिन्दू धर्म पर सार्वजनिक आरोप नही लगाये और न ही कभी उन्होंने 

हिन्दू मानबिंदुओं को ठेस पहुचाई, जब उन्होंने हिन्दू धर्म में नही मरने की बात की तो इसाई और 

मुस्लिम संगठनों ने अनेकों प्रलोभन दिए जिसमे निजाम हैदराबाद के करोड़ों रुपयों के आफर भी है को 

एक झटके में ठुकराकर ये घोषणा की की मुझे हिन्दुधर्म रूपी घर के एक कमरे में घुटन हो रही है में 

कमरा बदल दूंगा पर घर नहीं छोडूंगा. और गौतम बुद्ध के अनुयाई बन गए.अच्छा होता सालोदियाजी ये 

सब करने के बजाये रोडवेज के एम् डी के रूप में अपनी उपलब्धियों तथा अपने पूर्व पदों पर किये गए 

अच्छे कार्यों का हवाला देते और ये लड़ाई लड़ते तो उन्हें अपनी योग्यता बताने का उचित मंच मिलता, 

आज देश और प्रदेश में वंचित वर्ग से आये हुए कई अफसर उच्च पदों को अपनी योग्यता के बल पर 

सुशोभित कर रहे है ना की जाति के कारण. साथ ही उन्होंने कहा की वो अपने से जूनियर के निचे काम 

नहीं करेंगे इसलिए vrs लेना चाहते है, में उन्हें बताना चाहता हूँ की पदौनन्ति में आरक्षण के चलते कई 

सामान्य वर्ग के अफसर और कर्मचारी राजस्थान में अपने से कम योग्यता व् अनुभव वाले के अधीनस्थ 

सेवा कर रहे है. उनकी आवाज कोई नहीं सुनता ? बड़े अफसर धर्म को अफीम मानते है और जब अपने 

मतलब की बात आती है तो जाति और धर्म का छाता सहूलियत के तौर पर तान लेते है. पहले भी 

हरयाणा के एक मंत्री और नेता पुत्र ने शादी के लिए इस्लाम अपना लिया था......और अब ये.....

@  नरेंद्र 

नरेश बोहरा -नरेंद्र- की अन्य किताबें

मदन पाण्डेय 'शिखर'

मदन पाण्डेय 'शिखर'

मैं डर गया तो मैंने, अपनी जुबान बदली, एक नईं गोद क्या मिली ,मैंने माँ बदली, लोभ, लालच,स्वार्थ ने,तमाशा बना दिया, उम्र भर ढूंढता रहा, किस्मत कहाँ ब्द्ल्ी् सिर्फ अ्फ़्स्ो्स् .।

2 जनवरी 2016

1

अभिवादन

8 अक्टूबर 2015
0
1
0

करता हूँ अभिवादन सबका, तन से,  मन से , उल्लासित जीवन से , 

2

निजी लाभ हानि में धर्म को क्यों धकेले...

1 जनवरी 2016
0
3
1

राजस्थान के वरिष्ठ आईएस अफसर श्री उमराव सालोदिया ने मुख्य सचिव नहीं बनाने से नाराज होकर इस्लाम कबूल कर लिया, उनका कहना था की हिन्दू धर्म में भेदभाव होता है और वे दलित है अत: उन्हें इस पद से वंचित रखा गया है. ये बहुत ही अटपटी बात लगती है, अगर उन्हें मुख्य सचिव नही बनाया तो ये राजनितिक और प्रशासनिक नि

3

मेरा भारत मेरे भगवान्

26 अप्रैल 2017
0
1
0

25 दिसम्बर 1892, स्वामी विवेकानन्द ने श्रीपाद शिला पर अपना ध्यान प्रारम्भ किया। मान्यता है कि उसी शिलापर देवी कन्याकुमारी ने स्वयं तपस्या की थी। तप तो हर जन्म की भाँति ही शिवजी को प्राप्त करने के लिये था। किन्तु इस अवतार में देवी का जीवनध्येय कुछ और था। बाणासुर के वध के ल

4

आदर्श स्वयंसेवक पंडित दीनदयाल उपाध्याय

27 अप्रैल 2017
0
0
1

पं. दीनदयाल उपाध्याय की जन्मशती के अवसर पर एकात्म मानव दर्शन को लेकर अनेक गोष्टियों परिचर्चा ये और प्रकाशन हो रहे हैं। सामन्यतः इन सबमे दर्शन एवं सिद्धांतो की ही चर्चा अधिक होती है। थोडा अधिक चिंतन करने वाले व्यक्तियों ने एकात्म मानव दर्शन पर आधारित नीतियों का कैसे निर्मा

5

सत्तामद के विरुद्ध संघर्ष के नायक- भगवान् परशुराम

27 अप्रैल 2017
0
1
0

जय परशुराम जी. वैदिक कालखंड के आर्यावर्त में हमारे ऋषि मुनि क्षत्रियों को राज सत्ता सौंप उन्हें राष्ट्र और जन दोनों के हित में कार्य करने का निर्देश दे कर निश्रेयस भाव से वन में सामान्य साधनों में जीवन यापन करते थे, साथ ही निरंतर समाज को देने के लिए ज्ञान विज्ञान क

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए