देशप्रेम सदा ही बहता है,
हमसब की ही नस-नस में।
आन पड़ी तो जान भी देंगे,
खाते हैं हम, ये कसमें।
माना हमने कभी लड़ी नहीं,
देशहित में एक लड़ाई।
पर हमको जब-जब मौका मिला,
हम ने भी, जान लगाई।
इक क्रिकेट में ही दिखता है,
मेरा देशप्रेम कुछ को।
पिज्जा-बर्गर संस्कृति कहकर
ताना देते है मुझको।
आज तिरंगा विख्यात हुआ है
इन युवाओं के कन्धों पर।
इस देश का परचम लहरा है
मेरे खून-पसीने पर।
केसर का रंग बसा है मन में,
हरा बसा मेरे कर्म में।
सफ़ेद रंग बसता वाणी में,
नीला-चक्र मेरे श्रम में।
रहे ऊँचा, भारत का तिरंगा,
सभी करते अपना जतन।
इसके ख़ातिर करते सभी भारतीय
अर्पण अपना तन-मन-धन।
सब का साथ, सब का विकाश हो,
आओ मिलकर काम करें।
सोने की चिड़िया भारतवर्ष
विश्व फिर से पुकार करे।
-© राकेश कुमार श्रीवास्तव "राही"