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"मुक्तक"

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"मुक्तक"तलवारों की क्या कहें, जबतक रहती म्यान।तबतक जग सुंदर लगे, हाथ रहें बेध्यान।एक बार निकली अगर, म्यानों से करवाल-रक्त चखे बिन कब गई, कब म्यान कर ध्यान।।-१चंद्रहास रण की चमक, चाँद चमक आकाश।दोनों के आकार सम, एक सरीखे ताश।मर्यादा अनमोल है, दोनों के परिधान-तेज धार जबजब हु

"मुक्तक"जीते हैं जिलाते हैं खाते हैं पहनते हैं फिर क्यूँ दिखते कंकाल।किसके हैं भंडार कुछ कहते हैं छलकते हैं फिर क्यूँ पलते आकाल।हिलते हैं हिलाते हैं बमबम हैं थिरकते हैं अनजाने से हालात-आते हैं कहाँ से डराते हैं मुँह बिचकाते हैं फिर भगते क्यूँ तत्काल।।महातम मिश्र, गौतम गो

"मुक्तक"नमन करूँ जननी तुझे, चूमूँ तेरे पाँव हर डाली तेरी खिली, फैली शीतल छाँव मन चित तेरे पास हैं, सुंदर तेरा रूप हर्षित हैं सारे लला, सुंदर स्नेहल गाँव॥तेरी छवि अति पावनी, छाये सकल समाजलाल तेरा निहाल मैं, जन धन बढ़ता राज हर सुबहा सुंदर प्रभा, पुलकित है हर शाम तूँ तो मातु

"मुक्तक"नाचत गावत ग्वाल मुरारी माधव मोहन।गोवर्धन गिरि लपकि उचारी माधव मोहन।जय जय केशव गोविंद प्रभु महिमा गिरधारी-राधापति गोपाल कछारी माधव मोहन।।-१नाम सहस्त्र रूप अलबेला माधव मोहन।मोहक मोहन अति प्रिय छैला माधव मोहन।राधा जी का प्यार अमर घनश्याम बिहारी-गोकुल गलियाँ रचते मेला

"मुक्तक"नाच रही परियों की टोली, शरद पूनम की रात है।रंग विरंगे परिधानों में, सुंदर सी बारात है।मन करता है मैं भी नाचूँ, गाऊँ इनके साथ में-धवल चाँदनी खिली हुई है, सखी आपसी बात है।।महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी

(शीर्षक--- तम, तिमिर, अंधकार, अंधियारा, तमस आदि समानांतर शब्द)"मुक्तक"अंधेरों ने कब कहा, दे दो मुझको दाद।बैठो मेरे संग तुम, होकर के बरबाद।इसी लिए तो दिन बना और बनी मैं रात-लगी आँख पिय आप की, हुई निशा आबाद।।-१तिमिर तमस तम जब बढ़ा, हुआ धुप्प अँधकार।अँधियारों को तजे, उदय किरण

मापनी- 1222, 1222, 1222, 1222......"मुक्तक" कुटी मेरी महल मेरा, किराए का नही जानों बनाया हाथ से अपने, सजाया गाँव तुम मानों कहीं गफलत न हो जाए, तुम्हारी आँख के चलते नजरिये से तनिक कह दो, बगावत मत अभी ठानों।।-1 सदी बदली समय बदला, मगर क्या गांव घर बदला ठहर पूछों कहीं

"मुक्तक" अरमानों ने कर लिया, ढ़ूँढ ढ़ूँढ कर प्यार माँ ने ममता भर दिया, देकर चाह दुलार खर्च कर रहा हूँ अभी, घूम घूम कर लाड़ पूँजी लेकर दौड़ता, घर ढूँढू बाजार।। महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी

शीर्षक - बेशर्म / बेहया / बेगैरत बेशर्मी की हद हुई, मानो मेरे मीत देखों वापस ले रही, चाहत अपनी प्रीत बेहया मतिन बोलना, बेगैरत की बात अच्छाई की अलग है, सीधी सादी रीत।।-1 झांसे में आते रहे, भोले भाले लोग याद रहे जब लौटते, दे जाते बड़ रोग शोध सहन दिन रात हो, नेकी नौबत

"मुक्तक" खिले हैं फूल पलाश के रंग अपना लगाके दरख्तों पर छाया बसंता लालिमा खिलाके खुश्बू बेपरवाह है कण कण पराग छुपाए बरबस खींच लेती रौनकें मधुरिमा बिछाके।।-1 फोड़ के निकलती है ऊसर को ये हरियाली नजर न लग जाए काली कोयली की डाली कुँहकने आ गई बाँवरी बिरानी कोपलों मे

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