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"पावन छंद"

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विधान~ [भगण नगण जगण जगण सगण ] *(211 111 12, 1 121 112)*, 15वर्ण, 4 चरण,(यति 8-7), दो-दो चरण समतुकांत "पावन छंद" माखन महक रहा, मन में ललक है मोहन रहत कहाँ, घनश्याम चित है।। कोटिन जतन कियो, रसना रस भरी माधव मनन हियो, नयना तर वरी।। पावन जमुन जला, बसुदेव डगरी गोकुल गम

विधान~ [ भगण नगण जगण जगण सगण ] *(211 111 121 121 112)* 15वर्ण,4 चरण,(यति 8-7), दो-दो चरण समतुकांत। "पावन छंद" नाचत हिरन वहाँ, वनराज वन में सोहत मुकुट जहाँ, युवराज धन में।। मोहक किरन कली, हमराज अपना नाहक फिरन चली, गृहकाज सपना।। आवत चपल सखी, मनमोर चहके गावत घुमत गली,

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