“छुक छुक रेल” (यात्रा वृतांत) फिर वहीँ स्टेशन, वही रेल, वही पतली पट्टी वाली लोहे की डगर। चढ़ते उतरते धक्का मुक्की करती पसीने की कमाई हुई गठरी को सीने से चिपकाए परवरिश के रिश्ते। कोई आर.ए.सी., कोई कनफर्म तो कोई प्रतीक्षारत, अधीर, निराधार टिकट के साथ आशा भरी नजर के साथ सूच