जिस मंदिर में कभी किकारियां गुजा करती थी वहां पसरा है सन्नटा।
दीवारे चीख चीख कर बया कर रही हैवानियत को।
एक पल को सहम जाता है माँ का नन्हा सा दिल ।
की लौट कर क्या सुनाने को मिलेंगी मीठी सी किलकारियां?
आह! जरा सी भी कंपकपाहट नही आयी उन कातिल हाथों को।
जिसने गाला घोट दिया उस मासूमियत का।
दिल रोष से भर जाता है यह सोच कर, क्या है कोई सजा?
जो दरिंदो को यह बोध करा सके की एनोहोने घोटा नही है गला सिर्फ मासूमियत का,बल्कि घोटा है गाला ममता का,इंसानियत का।