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अब बातें न होंगी जंग की,अब बातें न होंगी जंग की।

3 अक्टूबर 2017
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माँ ने देखा ख्वाब में सरहदों के मंजर को जब।दिल धक् से हो गया,ख्याल आया बेटे का जब।कौन है सरहदों पर इंसानियत का दुसमन है जो,क्या सोच है ये कुछ बदगुमां इंसानो की।जो स्वार्थ में चढ़ा रहा बलि देश के परवानो की।सरहदों के पार भी तो होंगे माँ के बेटे ही।दर्द उनको भी तो होता होगा,उजड़ता होगा उनका आशियाँ।दिल दह

किलकारी

10 सितम्बर 2017
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जिस मंदिर में कभी किकारियां गुजा करती थी वहां पसरा है सन्नटा।दीवारे चीख चीख कर बया कर रही हैवानियत को।एक पल को सहम जाता है माँ का नन्हा सा दिल ।की लौट कर क्या सुनाने को मिलेंगी मीठी सी किलकारियां?आह! जरा सी भी कंपकपाहट नही आयी उन कातिल हाथों को।जिसने गाला घोट दिया उस मासूमियत का।दिल रोष से भर जाता ह

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