माँ ने देखा ख्वाब में सरहदों के मंजर को जब।
दिल धक् से हो गया,ख्याल आया बेटे का जब।
कौन है सरहदों पर इंसानियत का दुसमन है जो,
क्या सोच है ये कुछ बदगुमां इंसानो की।
जो स्वार्थ में चढ़ा रहा बलि देश के परवानो की।
सरहदों के पार भी तो होंगे माँ के बेटे ही।
दर्द उनको भी तो होता होगा,उजड़ता होगा उनका आशियाँ।
दिल दहलता होगा उनका भी सुन जंग की भयानक दास्ताँ।
हमने तो शहीद नाम दे कर लिया कर्तव्य पूरा,
दर्द तो जाने है वो जिन्होंने खोया है अपना आसमां।
चीखें उन घरों में अब भी गूंजा करती है हरदम,
बूढ़ी आँखे ढूढ़ती है रास्तों पे पैरो के निशां,
उजड़ा सुहाग है जिनका रखते ही पहला कदम।
रहे है सूनी, रातें है सूनी ,सूनी हो गयी सारी जिंदगी।
है कोई मोल क्या उनके इस बलिदान की?
बस करो छोड़ो गुमां ऐ इंसानियत के दुश्मनों।
अपने निजी स्वार्थ में कब तक करोगे औरों की कुर्बानियां।
आओ छोड़ सारे शिकवे गिले करे बातें अमन की।
हम ठान ले न होने देंगे सूनी कोई गोद भी,
न छलके गे आँसू किसी आँख से अब।
होंगीं खुशियाँ दीपावली की खायेंगे सेवईयां ईद की ।
अब बातें न होंगी जंग की, बाते न होंगी जंग की।
"हम केवल इंसान है हम केवल इंसान है।"