shabd-logo

परिभाषा बचपन की बदलने लगी हैं।।

2 अगस्त 2017

690 बार देखा गया 690
परिभाषा बचपन की बदलने लगी हैं। कलियाँ खिलना भूल चुकी हैं, मुरझाकर, मायूसी सिमट चुकी हैं। कहीं है पैरों में छाले, भूखे, बेबस... हालात के मारे दर - दर भटकते, ढूंढते सहारे। परिभाषा बचपन की बदलने लगी हैं। भविष्य थे जो कल का, आज मे भी डरने लगे हैं। आस छोडकर, मजबूर, हाथ फैलाने लगे हैं। नमी है कही, आखों में, कभी नशे में चूर है, नन्हे - नन्हे कदम हारने लगे हैं। परिभाषा बचपन की बदलने लगी हैं।। बचाना है जो इसको, पयत्न सबको करना होगा, वरना आज जो खोने लगा है कल नामोनिशा ना होगा। परिभाषा बचपन की बदलने लगी हैं।।
नेहा

नेहा

धन्यवाद।

6 अगस्त 2017

नृपेंद्र कुमार शर्मा

नृपेंद्र कुमार शर्मा

परिभाषा बचपन की बदलने लगी है

3 अगस्त 2017

1

तलाश ...खुशी की

8 जनवरी 2016
1
2
0

कभी ना जाने किस तलाश में जो सामने  हैं, उसे हम नजरअंदाज कर देते हैं और फिर जब एहसास होता हैं, शायद देर हो जाती हैं, पर याद रखें जरूरी नहीं कि जो नहीं हैं, मिल जाने पर खुशी दे ही, कभी पाने पर खुशी ओझल भी हो जाती हैं, क्योंकि तब जो पास था, खो चुका होता हैं!!!

2

परिभाषा बचपन की बदलने लगी हैं।।

2 अगस्त 2017
1
1
2

परिभाषा बचपन की बदलने लगी हैं। कलियाँ खिलना भूल चुकी हैं, मुरझाकर, मायूसी सिमट चुकी हैं। कहीं है पैरों में छाले, भूखे, बेबस... हालात के मारे दर - दर भटकते, ढूंढते सहारे। परिभाषा बचपन की बदलने लगी हैं।भविष्य थे जो कल का, आज मे भी डरने लगे हैं। आस छोडकर, मजबूर, हाथ फैलाने लगे हैं। नमी है कही, आखों

3

खोली जब आखे सुबह...

4 अगस्त 2017
1
1
2

खोली जब आखे सुबह। नया - नया सब लगने लगा।। चाद कुछ शरमाया सा। सूरज मुस्कुराने लगा।। खोली जब आखे सुबह। नया - नया सब लगने लगा।। चिड़िया चहक-चहक गाती सी, तितलियां रंग बिखेरने लगी, फूलों में खुश्बू ताजा - ताजा। मस्ती में झूमता समा सारा लगा।। खोली जब आखे सुबह। नया - नया सब लगने लगा।। रोशनी उमंग लिए, मन मह

4

बारिश की बूंदें...

8 अगस्त 2017
1
2
4

नन्ही सी मगर। बूंदें ये बारिश की बहुत कुछ कह जाती।। कभी यादों का सैलाब पलकों में। तो कभी नये एहसास।। कभी कहानी सुनाती सी। तो कभी आज को कैद कर जाती।। पर जब भी आती। रंग नये भर जाती।। रख पाती जो भला संभाल के। पानी संग मिल जाती।। नन्ही सी मगर। बूंदें ये बारिश की बहुत कुछ कह जाती।।

5

आसमां ने पूछां... कैसी है धरती।

9 अगस्त 2017
1
0
0

उडाने भरते पंछी नित नभ में, करने गुफ्तगू आसमां से। आसमां ने पूछां, कैसी है धरती, पंछी ने कहां, मिलके रोज तुमसे, हैं वो झूमती। पा कर बादलों से, संदेसा तुम्हारा, हरियाली वो हो जाती। छन कर किरणें तुमसे, जब भी उससे टकराती, इक - इक डाली, फूलों से वो सजाती। आसमां ने पूछां, कैसी है धरती, पंछी ने कहां,मुझको

6

भूली बिसरी यादे बचपन की।

9 अगस्त 2017
1
0
1

भूली बिसरी यादे बचपन की, आती जब भी, खिलती मुस्कान, कठोर हृदय की भी। रखते थे बादलों पे पांव, रहते थे आसमां के गांव। चलती थी अपनी भी, कई पानी में नांव। खेलते थे संग सब मिल-जुल, छोटे-बड़े सब थे यार हमारे। घाव कोई भी हो, पल में भर जाता था। खिलोना कोई हो ना हो, खेलने में मजा खूब आता था। रख लू सब यादें, स

7

कलम और कागज की दोस्ती...

9 अगस्त 2017
1
1
2

कलम और कागज की दोस्ती। कमाल क्या खूब दिखाती।। एक आइना तो, एक अक्स बन जाती। एक साज तो, एक संगीत बन जाती। एक बने एहसास, एक जरिया बन जाती। कलम और कागज की दोस्ती। कमाल क्या खूब दिखाती।।

8

दादा - दादी मेरे बूढ़े हो चले...

10 अगस्त 2017
1
2
3

दादा - दादी मेरे बूढ़े हो चले, चश्मे के बहाने लडते - झगड़ते। उम्र जितनी ढल चुकी, प्रेम उतना गहरा हो चला, एक - दूजे बिन रह ना पाते, कई जन्मों के साथी, मन को ये लगते प्यारे, सर पर चश्मा लेके, सारा घर नापते, ढूंढते - ढूंढते चश्मा, खुद ही खो जाते, तब फिर याद आता, जोर - जोर से ठहाके लगाते, दादा - दादी मे

9

उम्र का सफर...

10 अगस्त 2017
1
3
2

उम्र का हर एक सफर तय हो जाता है हसते - खेलते अलविदा कह जाता है। एक दिन जीवन अंत तक आकर दहलीज को सदा - सदा के लिए पार कर जाता है क्या लाए, क्या पाया सब यही रह जाते हैं साथी सभी हाथ से छिटक जाते हैं कौन, किसका - कितना था कौन जान पाया बस जो कर्म अपने थे साथ - साथ आये कुछ टुकड़े यादों में कुछ हिसाब में

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए